हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, जेल मंत्री कृष्ण पवार और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने खुद गुरमीत राम रहीम को पैरोल देने की पैरवी की है.
खास बात ये है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, जेल मंत्री कृष्ण पवार और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने खुद गुरमीत राम रहीम को पैरोल देने की पैरवी की है. अनिल विज ने तो यहां तक कह दिया कि गुरमीत सिंह राम रहीम एक आम इंसान के अधिकार के चलते पैरोल का हकदार है.
नियमों के मुताबिक दो साल की सजा पूरी होने के बाद ही पैरोल दी जा सकती है, लेकिन गुरमीत राम रहीम ने दो साल पूरे होने से पहले ही पैरोल के लिए अर्जी दाखिल कर दी. उधर, सुनारिया जेल प्रशासन ने दो साल की अवधि पूरी होने से पहले ही पैरोल के आवेदन को स्वीकार कर यह साबित कर दिया है कि बाबा का दबदबा आज भी कायम है.
गौरतलब है कि हरियाणा में इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. गुरमीत राम रहीम के डेरे का मुख्यालय सिरसा में है. हरियाणा में उसके अनुयायियों की संख्या लाखों में है. अगर गुरमीत राम रहीम को पैरोल दी जाती है, तो इसमें एक और जहां सरकार का फायदा है. वहीं दूसरी और बाबा को भी खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलेगा.
उसके आ जाने से सिरसा में सुनसान पड़ा डेरा सच्चा सौदा फिर से गुलजार हो जाएगा. राम रहीम डेरे में लौटकर फिर से अपने समर्थक जमा कर सकता है. वहीं सरकार इसके एवज में अपना वोट बैंक मजबूत कर सकती है. हालांकि हरियाणा सरकार के इस फैसले का चारों और विरोध हो रहा है.
दो साल पहले पंचकूला सहित कई स्थानों पर हुए खून खराबे को याद करके लोग आज भी सिहर उठते हैं. उधर, हरियाणा सरकार के अधिकारियों ने माना है कि हरियाणा के गृह विभाग के पास गुरमीत राम रहीम का पैरोल आवेदन पहुंचा है, लेकिन सरकार ने फिलहाल उसके आवेदन पर कोई फैसला नहीं लिया है.
राज्य के गृह सचिव के मुताबिक अभी सरकार ने सिरसा और रोहतक जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है कि क्या गुरमीत राम रहीम को पैरोल दी जानी चाहिए? क्या उसको पैरोल देने के बाद इन जिलों में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है?
फिलहाल, गुरमीत राम रहीम के पैरोल के आवेदन ने हरियाणा के राजनीतिक सर्कल में फिर से हलचल पैदा कर दी है. देखना दिलचस्प होगा कि गुरमीत राम रहीम को जेल से छुट्टी मिलती है या फिर उसकी और भारतीय जनता पार्टी की एक दूसरे से फायदा उठाने की योजना धरी की धरी रह जाएगी.
क्या होती है पैरोल
कानून के जानकार बताते हैं कि पैरोल दो तरह की होती हैं, पहली कस्टडी परोल और दूसरी रेग्यूलर पैरोल. कस्टडी पैरोल उस स्थिति में दी जाती है, जब कैदी के परिवार में किसी की मौत जाए या फिर परिवार में किसी की शादी हो या फिर परिवार में कोई बहुत बीमार हो. इसके अलावा अति विशेष परिस्थिति में कस्टडी पैरोल दी जाती है. कस्टडी पैरोल के लिए कैदी जेल अधीक्षक को आवेदन करता है. अगर जेल प्रशासन आवेदन खारिज कर दे तो कोर्ट में अपील की जा सकती है. कस्टडी पैरोल के दौरान आरोपी या दोषी को पुलिस अभिरक्षा में जेल से बाहर लाया जाता है. इसकी अधिकतम अवधि 6 घंटे होती है.
रेगुलर पैरोल दोषी कैदी को ही दी जाती है. अंडर ट्रायल कैदी के लिए इसका प्रावधान नहीं है. इसमें दोषी के लिए एक समय सीमा भी निर्धारित होती है. रेगुलर पैरोल उस दोषी मुजरिमों को नहीं दी जाती, जिसने रेप के बाद हत्या की घटना को अंजाम दिया हो और वह दोषी करार दिया गया हो. पैरोल पाने के लिए कैदी का भारतीय नागरिक होना भी ज़रूरी है. आतंकवाद या देशद्रोह से जुड़े मामलों के दोषी को पैरोल नहीं दी जा सकती. रेगुलर पैरोल एक बार में एक माह के लिए दी जाती है. विशेष स्थिति में इसे बढ़ाया जा सकता है.
कानूनी जानकारों के मुताबिक पैरोल का फैसला प्रशासनिक होता है. अगर जेल प्रशासन और गृह विभाग से पैरोल का आवेदन निरस्त हो जाए तो इसके लिए दोषी अदालत जा सकता है. पैरोल का आवेदन वही कैदी कर सकता है, जो सजा काट रहा हो. उसका कोई आवेदन किसी भी अदालत में विचाराधीन नहीं होना चाहिए. पैरोल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही दी जाती है.
शर्त यह है कि कैदी का जेल में कंडक्ट अच्छा होना चाहिए. अगर वो पहले जमानत पर छूटा है, तो उस दौरान उसने कोई गलत काम ना किया हो और पैरोल या जमानत की शर्त को पहले कभी भी ना तोड़ा हो. नियमानुसार 6 माह बीतने के बाद दूसरे पैरोल के लिए आवेदन किया जा सकता है. पैरोल का आवेदन कैदी जेल अधीक्षक को देता है और वह उस आवेदन को गृह विभाग के पास भेजता है ताकि उस पर फैसला लिया जा सके.