बीजेपी आंध्र प्रदेश में राज्यसभा की तरह ही टीडीपी के दो तिहाई विधायकों को अपने साथ मिलाना चाहती है ताकि दलबदल कानून की अड़चने उनकी राह में न आए. इसीलिए बीजेपी कम से कम टीडीपी के 14 विधायकों पर बीजेपी की नजर है. बीजेपी इसमें कामयाब रहती है तो चंद्रबाबू नायडू से विपक्ष के नेता का पद भी छिन सकता है.

लोकसभा चुनाव के बाद से तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. पहले टीडीपी के चार राज्यसभा सांसदों ने पार्टी से बगावत कर बीजेपी का दामन थाम लिया तो दूसरी ओर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने ‘प्रजा वेदिका’ बिल्डिंग को तोड़ने का आदेश दिया है. इस बिल्डिंग में ही पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू रह रहे हैं. नायडू की मुसीबत यहीं खत्म नहीं हो रही है बल्कि टीडीपी के विधायक भी बगावत कर बीजेपी के साथ जाने की कोशिश में हैं.

बता दें कि लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश की 25 में 22 सीटें जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस और तीन सीटें टीडीपी जीतने में कामयाब रही है. इसी तरह विधानसभा चुनाव में कुल 175 सीटों में से 151 वाईएसआर कांग्रेस, 23 टीडीपी और एक सीट अन्य को मिली है. कांग्रेस और बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली. इसके बावजूद बीजेपी आंध्र प्रदेश में टीडीपी की जगह लेने की जुगत में है.

सूत्रों की मानें तो बीजेपी की नजरें टीडीपी विधायकों पर है. विशाखापट्नम से विधायक घंटा श्रीनिवास के नेतृत्व में करीब 14 विधायक बीजेपी में शामिल होने की चर्चा में है. गंटा श्रीनिवास टीडीपी के इन विधायकों को लेकर कोलंबो में हैं. हालांकि, गंटा श्रीनिवास से जब इस संबंध में बात की गई तो उन्होंने इसे खारिज करते हुए कहा कि वो कारोबार के सिलसिले से कोलंबो आए हुए हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं टीडीपी का विधायक हूं और टीडीपी में ही रहूंगा’.

बता दें कि जगन रेड्डी की सरकार बनने के बाद आंध्र प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष ने साफ कर दिया है कि कोई विधायक पार्टी छोड़कर आता है तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाए. यही वजह है कि बीजेपी सूबे में राज्यसभा की तरह ही टीडीपी के दो तिहाई विधायकों को अपने साथ मिलाना चाहती है ताकि दलबदल कानून की अड़चने उनकी राह में न आए. इसीलिए बीजेपी कम से कम टीडीपी के 14 विधायकों को मिलाना चाहती है. बीजेपी इसमें कामयाब रहती है तो चंद्रबाबू नायडू से विपक्ष के नेता का पद भी छिन सकता है.

इस बार के विधानसभा चुनाव में टीडीपी से जीतने वाले 23 विधायकों में सबसे वरिष्ठ विधायक गंटा श्रीनिवास हैं. उन्होंने 2014 में कांग्रेस छोड़कर टीडीपी का दामन थामा था और नायडू सरकार में शिक्षा मंत्री बने थे. 2019 के चुनाव में विपरीत माहौल के बाद भी गंटा श्रीनिवास जीतने में सफल रहे थे.

बीजेपी की नजर टीडीपी के उन बड़े नेताओं पर है जो चंद्रबाबू नायडू से नाराज हैं. टीडीपी में कई नेता ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक गलतियों की वजह से ही टीडीपी को शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा है. इसके अलावा कई नेता मानते हैं कि चंद्रबाबू ने एनडीए से बाहर आकर सबसे बड़ी गलती की. मौके की नजाकत को समझते हुए बीजेपी टीडीपी के मजबूत नेताओं को अपने साथ मिलाने में जुटी है. इसी कड़ी में चार राज्यसभा सदस्यों का बीजेपी ने विलय कराया है.

2024 पर बीजेपी की नजर

आंध्र प्रदेश में बीजेपी को मजबूत करने और 2024 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव तक पार्टी को मुख्य मुकाबले में खड़े करने की जिम्मेदारी राम माधव और सह-प्रभारी सुनील देवधर के अलावा जेवीएल नरसिम्हा राव के कंधों पर है. इन तीन नेताओं की तिकड़ी बीजेपी के इस प्लान को जमीन पर उतारने में जुट गई है. बीजेपी की प्रदेश में प्राथमिकता कापू जाति पर पकड़ रखने वाले नेताओं पर है. सुनील देवधर सूबे में लगातार बीजेपी को मजबूती देने की दिशा में काम कर रहे हैं.

कापू समुदाय पर बीजेपी डाल रही डोरे

आंध्र प्रदेश में कापू जाति की आबादी करीब 18 फीसदी है और इनकी रेड्डी समुदाय से राजनीतिक प्रतिद्वंदिता जगजाहिर है. रेड्डी समुदाय एक समय कांग्रेस का मजबूत वोटबैंक माना जाता था जो अब वाईएसआर कांग्रेस के साथ जुड़ गया है. जबकि कापू समुदाय टीडीपी का मूल वोटबैंक है. इसलिए बीजेपी कापू समुदाय के नेताओं को अपने साथ मिलाने में जुटी है. लोकसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ने कांग्रेस छोड़ने वाले कापू जाति के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री कन्ना लक्ष्मी नारायण को पार्टी की आंध्र प्रदेश अध्यक्ष पहले ही बना रखा है.

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