Ravish Kumar of India, one of five recipients of the Ramon Magsaysay Awards for this year, delivers his lecture on the "Power of Citizen's Journalism to Advance Democracy" Friday, Sept. 6, 2019, in Manila, Philippines. The Ramon Magsaysay Awards, Asia's equivalent of the Nobel Prize, is given annually to Asians in honor of the late Philippine President Ramon Magsaysay who died in a plane crash. Other awardees are Kim Jong-ki of South Korea, Angkhana Neelapaijit of Thailand, Ko Swe Win of Myanmar and Raymundo Cayabyab of the Philippines. (AP Photo/Bullit Marquez)

धीरज रखें. इस पक्ति को पढ़ते ही अधीर न हों. यह मेरे लेख के सबसे कम महत्वपूर्ण बातों में से एक है. मगर मंत्री जी प्रभाव को देखते हुए मैंने इसे हेडलाइन में जगह दी है. मैं अपने इस अपराध के लिए क्षमा मांगता हूं. मेरी विनम्रता आदर्श और अनुकरणीय है.

मैं देशभक्त हूं. सच्चा भी और अच्छा भी. दोनों का कांबो(युग्म) कम ही देशभक्त में मिलता है जो कि मुझमें मिलता हुआ दिखाई दे रहा है. इसलिए रविशंकर प्रसाद के हर बयान के साथ हूं. एक राष्ट्रवादी सरकार के मंत्री की योग्यता की सीमा नहीं होती. वह एक ही समय में अर्थशास्त्री भी होता है. कानूनविद भी होता है. शिक्षाविद भी होता है. राष्ट्रवाद की राजनीति आपको असीमित क्षमताओं से लैस कर देती है. यह बात रविशंकर प्रसाद का मज़ाक उड़ाने वाले कभी नहीं समझ पाएंगे.

इसलिए आप रविशंकर प्रसाद के बयान का मज़ाक नहीं उड़ाएं. बल्कि उनके इस बयान पर हार्वर्ड में रिसर्च होना चाहिए. अगर सरकार ख़ुद से ये मॉडल नहीं भेजती है तो रविशंकर प्रसाद को अपने किसी परिचित के ज़रिए वहां भिजवा देना चाहिए. मेरी राय में रविशंकर प्रसाद अर्थव्यवस्था को आंकने के एक नए मॉडल के करीब पहुंच गए हैं. जिस पर उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिल सकता है. इसलिए मैं उनका हौसला बढ़ा रहा हूं. आप भी बढ़ाएं. मज़ाक न उड़ाएं. उड़ाएं भी तो सिर्फ हिन्दी में ताकि गूगल सर्च से दुनिया के बाकी देशों को पता न चले और भारत की बदनामी न हो.

रविशंकर प्रसाद ने अपनी बात के पक्ष में हार्ड-डेटा दिया है. 2 अक्तूबर को रिलीज़ हुई तीन फिल्मों की एक दिन की कमाई 120 करोड़ से अधिक कमाई हुई है. देश की अर्थव्यवस्था ठीक है तभी तो फिल्में बिजनेस कर रही हैं.

यह बिल्कुल ठीक बात है. देश की जनता उनके साथ है तभी तो वे अर्थशास्त्र का एक नया मॉडल गढ़ पा रहे हैं. मीडिया के पास खिलाफ जाने का विकल्प ही नहीं है. इतना साथ अगर किसी को मिल जाए तो वह अर्थशास्त्र क्या, एक दिन चुनावी सभा में इस बात पर लेक्चर दे सकता है कि न्यूक्लियर रिएक्टर कैसे बनता है. इसे आम आदमी भी अपने घरों में बांस-बल्ली लगाकर तैयार कर सकता है और इसी बात पर वह चुनावों में ज़बरदस्त जीत हासिल कर सकता है. जो कि महाराष्ट्र के चुनावों में रविशंकर प्रसाद की पार्टी को मिलने भी जा रही है.

निर्मला सीतारमण ने कहा था कि नई पीढ़ी के नौजवान ओला-ऊबर से चलने लगे हैं इसलिए कारों की बिक्री गिर गई है. वैसे उन्होंने नहीं बताया कि फिर ओला-ऊबर के बेड़े में कितनी कारें जुड़ी हैं? जो काम निर्मला सीतारमण अधूरा छोड़ गई थीं उसे केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पूरा किया है. रविशंकर प्रसाद ने निर्मला सीतरमण के आधे-अधूरे मॉडल को संपूर्णता की दिशा में आगे बढ़ाया है. मैं उनका हौसला बढ़ाता हूं ताकि वे इसे पूरा करें.

रविशंकर प्रसाद सभी भाषाओं की फिल्मों का डेली-डेटा लेकर एक मॉडल बना सकते हैं. जिससे सकल घरेलु उत्पादन यानि जीडीपी का प्रतिदिन संध्या आंकलन हो सके. मेरी राय में भारत सरकार को अपना एक अधिकारी रोज़ सिनेमा हॉल के काउंटर पर भेजना चाहिए. ताकि हमारे सैंपल कलेक्शन पर कोई शक न कर सके. इसमें वे चाहें तो एक और चीज़ जोड़ सकते हैं. आज़ादपुर सब्ज़ी मंडी से लेकर देश की सभी छोटी-बड़ी सब्ज़ी मंडियों और मोहल्ले की रेहड़ियों पर बिकने वाली सब्ज़ियों का डेटा लेकर बता सकते हैं कि भारत में मंदी नहीं है. बेकार में उनकी वित्त मंत्री मंदी मंदी कर रही हैं. रिज़र्व बैंक स्लो-डाउन कर रहा है. इन सबको करारा जवाब देने की ज़रूरत है. अभी ही टाइम है. वे कुछ भी बोलेंगे तो जनता साथ देगी. बाद में ऐसे रिसर्च के साथ दिक्कत हो जाएगी. इसीलिए इसे पब्लिक में पास कराकर नोबेल पुरस्कार ले ही लेना है.

रविशंकर प्रसाद ने उसी प्रेस कांफ्रेंस में एक और बात कही है. उस पर हंसने की ज़रूरत है. ऐसी बात कहने का साहस कम लोगों में होता है. उस साहस को सहजता से स्वीकार करने की ज़रूरत है. महामंत्री महाप्रसाद जी ने जो कहा है वह अदभुत है. पूछिए तो सही कि कहा क्या है?

‘मैं एन एस एस ओ की रिपोर्ट को ग़लत कहता हूं और पूरी ज़िम्मेदारी के साथ कहता हूं. उस रिपोर्ट में इलेक्ट्रानिक, मैन्यूफैक्चरिंग, आईटी क्षेत्र, मुद्रा लोन और कॉमन सर्विस सेक्टर का ज़िक्र नहीं है. क्यों नहीं है? हमने कभी नहीं कहा था कि हम सबको सरकारी नौकरी देंगे. हम ये अभी भी नहीं कह रहे हैं. कुछ लोगों ने इन आंकड़ों को योजनाबद्ध तरीके से ग़लत ढंग से पेश किया है. यह मैं दिल्ली में भी कह चुका हूं.’

ऊपर वाला पैराग्राफ बड़ा है तो फिर से उस साहसिक बयान को सामने निकाल कर रख रहा हूं.

‘हमने कभी नहीं कहा था कि हम सबको सरकारी नौकरी देंगे. हम ये अभी भी नहीं कह रहे हैं.’

मेरी राय में नौजवानों ने भी कभी नहीं कहा है कि आप नौकरी नहीं देंगे तो वोट नहीं देंगे. बल्कि नौजवानों ने नौकरी न मिलने पर भी वोट दिया है और आगे भी देंगे. लेकिन ये बयान देकर रविशंकर प्रसाद ने सरकार का बोझ हल्का तो किया ही है. नौजवानों को भी मुक्ति दी है. दिन भर ये नौजवान ज़िंदाबाद छोड़कर नौकरी नौकरी करते रहते हैं. मैं इसके लिए रविशंकर प्रसाद को बधाई देता हूं और आने वाले सभी चुनावों में निश्चित जीत की एडवांस बधाई भी भेजता हूं.

चूंकि सवाल पूछने की आदत है तो खुशामद में सवाल न रह जाए. इसलिए पूछ रहा हूं.

NSSO के आंकड़े आप नहीं मानते हैं. 45 साल में सबसे अधिक बेरोज़गारी की बात नहीं मानते हैं. आप मालिक हैं. आप कुछ मत मानिए. पर रिपोर्ट पब्लिक तो कर देते. तो हम भी देख लेते कि आपकी बात कितनी सही है. आपने कहा कि इसमें मैन्यूफैक्चरिंग नही है. तो आपका ही डेटा कहता है कि इस सेक्टर का ग्रोथ निगेटिव मे चला गया है. साढ़े पांच साल में यह सेक्टर धंसता ही चला गया है. तो आप बता दीजिए कि मैन्यूफैक्चरिंग में कितनी नौकरियां पैदा हुई. या आप इस पर भी नोबेल लेना चाहते है कि जो सेक्टर निगेटिव ग्रोथ करता है उसमें भी रोज़गार पैदा होता है? अगर NSS0 ने नहीं दिया तो आप बता दीजिए. सरकार में राहुल गांधी तो नहीं हैं न.

वैसे मंत्री जी ज़्यादा लोड न लें. अपनी एक और ऐतिहासिक राजनीतिक सफलताओं के जश्न की तैयारी पर ध्यान दें. वो ज़्यादा ज़रूरी है. अगली बार बोल दीजिएगा कि बेरोज़गारों को लिबरल ने बहका दिया है कि उनके पास रोज़गार नहीं है. मैं गारंटी देता हूं कि सब हां में हां कह भी देंगे और इस तरह लिबरल की धुलाई भी हो जाएगी. बोलें रविशंकर प्रसाद की जय. तीन बार अपने कमरे में बोलें. लिबरल के चक्कर में पड़ कर मंत्री का मज़ाक न उड़ाएं. सच्चा और अच्छा देशभक्त बनें. जय हिन्द.

साभार- रविश कुमार का ये ब्लॉग https://khabar.ndtv.com पर भी आप पढ़ सकते हैं

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