जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अर्थशास्त्र विभाग के सब्जेक्ट एसोशिएशन ने 11 जुलाई, 2024 को विश्व जनसंख्या दिवस को बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया। इस अवसर पर इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज (आईडीएस) कोलकाता के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शाश्वत घोष द्वारा “भारत में जनसांख्यिकी लाभांश: क्या यह ‘जनसांख्यिकी उपहार या बोझ’ है” विषय पर एक ऑनलाइन व्याख्यान आयोजित किया गया और इसके उपरांत जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अर्थशास्त्र विभाग के मॉडल क्लास रूम में जनसंख्या पर एक ऑफ़लाइन क्विज़ प्रतियोगिता आयोजित की गई।
विश्व जनसंख्या दिवस समारोह की शुरुआत जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो अशेरेफ इलियान के बीज वक्तव्य से हुई। उन्होंने जनसंख्या के विभिन्न आयामों के बारे में जागरूकता फैलाने में विश्व जनसंख्या दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला।
डॉ. घोष ने जनसांख्यिकी लाभांश के मुद्दों पर अपनी बात राखी जिसमें भारत अद्वितीय रूप से आता है। उन्होंने अपने भाषण में जनसांख्यिकी लाभांश के संदर्भ में मौजूद अवसरों और चुनौतियों की स्पष्ट रूप से जानकारी दी । डॉ. घोष ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि वर्तमान में भारत के पास अद्वितीय अवसर हैं, क्योंकि 2030 तक कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी 69 प्रतिशत हो जाएगी, जिसकी औसत आयु 28.4 वर्ष होगी। भारत कम मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर तथा उच्च जीवन प्रत्याशा की ओर बढ़ रहा है । भारत में प्रजनन दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है, परंतु ये काफी हद तक भिन्न हैं। युवा आबादी में बढ़ोतरी के कारण भारत तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता मांग वाला देश बन जाएगा और वैश्विक उत्पादन का महत्वपूर्ण हिस्सा पैदा करेगा।
हालांकि, इन लाभों का संचय संदर्भ की अनुकूलता पर निर्भर करता है, जो भारत में ना मौजूद सा प्रतीत होता है उदाहरण स्वरूप भारत में चीन और अमेरिका जैसे देशों की तुलना में श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) काफी कम है। इसी प्रकार अन्य देशों की तुलना में भारतीय बच्चों का काफी अधिक अनुपात कुपोषण से पीड़ित है जो वयस्कता के समय अधिगम एवं मानव पूंजी की कम गुणवत्ता में बादल जाता है। असमानता की अभूतपूर्व वृद्धि भी जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करती है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ज़कारिया सिद्दीकी ने डॉ. घोष की बातों के पूरक के रूप में कुछ अतिरिक्त टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि नीति सुधार के मुद्दे लंबे समय से चले आ रहे हैं और इनका समाधान अभी भी किया जाना है। दुनिया का कोई भी देश बिना विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि के विकसित नहीं हुआ है। डॉ. सिद्दीकी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत से कृषि क्षेत्र नकारात्मक शुद्ध समर्थन पर रहा है। इसने ग्रामीण भारत में मानव विकास हेतु एक बड़ी बाधा के रूप में कार्य किया है। हम जलवायु परिवर्तन की प्रवृत्ति को अपनाने अथवा कम करने में भी विफल रहे हैं जिससे उत्पादन और उत्पादकता में कमी आई है।
सब्जेक्ट एसोशिएशन के सहायक प्रोफेसर और छात्र सलाहकार डॉ. वसीम अकरम ने कार्यक्रम का समन्वय किया। इस कार्यक्रम में जामिया के अर्थशास्त्र विभाग के बीए (ऑनर्स), एमए एवं पीएचडी अर्थशास्त्र के छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का समापन जामिया के अर्थशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. मोहम्मद काशिफ खान द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।