सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें डिटेन कर डिपोर्ट करने की गुहार लगाई गई है। याचिका में केंद्र व पश्चिम बंगाल सरकार को एक वर्ष के भीतर ऐसे सभी लोगों को डिपोर्ट करने का निर्देश देने की गुहार लगाई गई है।
बर्धमान निवासी मानवाधिकार कार्यकर्ता संगीता चक्रवर्ती द्वारा संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत दायर इस याचिका में ऐसे सरकारी अधिकारियों, पुलिसकर्मियों और सुरक्षा बल के लोगों की पहचान कर उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून(रासुका) लगाने की गुहार लगाई गई है जिनका लिंक ऐसे माफियाओं से हैं जिनकी बदौलत ये सभी भारत में अवैध तरीके से घुस आए।
वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया है कि ऐसे सरकारी अधिकारियों की आय से अधिक संपत्तियों को शत-प्रतिशत जब्त कर लिया जाना चाहिए। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि वैसे सरकारी अधिकारियों, ट्रैवल एजेंट व अन्य लोगों पर भी रासुका लगाया जाना चाहिए जिन्होंने रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियो के लिए आधार, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत आदि की व्यवस्था करवाई।
याचिका में यह भी कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में एक अध्याय जोड़ा जाए और उसमें अवैध तरीके से देश में घुसने के अपराध को संज्ञेय गैर जमानती और गैर समझौतावादी घोषित किया जाए। याचिका में दावा किया गया है कि हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव के बाद रोहिंग्या व बांग्लादेशी घुसपैठियों ने हिंदू परिवारों के साथ लूटपाट, मारपीट, अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम दिया। उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया।
निशाना उन हिन्दू परिवारों को निशाना बनाया गया जिन्होंने भाजपा को वोट दिया था। याचिका में ऐसे कुछ पीड़ित परिवारों का हवाला भी दिया गया है। याचिका में विधि आयोग की 175वीं रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया था कि अवैध घुसपैठिए लोकतंत्र और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है। रिपोर्ट में खासतौर पर भारत के पूर्वी भाग और जम्मू एवं कश्मीर में घुसपैठियों का जिक्र किया गया था।