दशकों से चला आ रहा अयोध्या का राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद समाधान की ओर बढ़ चला है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई पूरी हो गई। कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है, जो 23 दिन में सार्वजनिक कर दिया जाएगा। अदालत ने कहा कि अगले तीन दिन तक इस मामले में दस्तावेज जमा कराए जा सकते हैं। इस बीच मध्यस्थता पैनल ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की है, हालांकि यह साफ नहीं है कि रिपोर्ट में है क्या। पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 40 दिनों तक सुनवाई की, जिसमें विवादित भूमि के मालिकाना हक और रामलला विराजमान को न्यायिक व्यक्ति मानने के मुद्दे पर दोनों पक्षों ने दलीलें दीं।
अंतिम सुनवाई से ठीक पहले इस केस के मुख्य मुस्लिम पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड के जमीन पर अपना दावा छोड़ने की खबर आई। कहा गया कि यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता पैनल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में केस वापस लेने का हलफनामा दाखिल कर दिया है लेकिन बाद में यह अफवाह साबित हुई। सचाई यह है कि आज तक इस विवाद में पहले भी कई तरह की अफवाहें उड़ती रही हैं। इस मामले ने पिछले तीन दशकों में देश और समाज को न जाने कितने आघात दिए हैं। हर दो-तीन साल बाद इसे लेकर उत्तेजक बयानबाजी शुरू हो जाती है। माहौल में अनावश्यक तनाव फैल जाता है, जिसका फायदा समाज विरोधी तत्व उठाते हैं।
अच्छा होगा कि यह ऊंट अब एक करवट बैठ जाए। इसे सुलझाने के लिए राजनीतिक और गैर-राजनीतिक स्तर पर कई तरह की पहलकदमियां हुईं लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था लेकिन इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दायर की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले की तामील पर रोक लगाने और विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। आखिरकार इन 14 अपीलों पर लगातार सुनवाई हुई। बीच में सुप्रीम कोर्ट ने इसे मध्यस्थता के जरिए सुलझाने की सलाह भी दी थी, पर बात नहीं बनी।
अंतत: दोनों पक्षों के अलावा देश भर में यही राय बनी कि इसका फैसला अब सुप्रीम कोर्ट ही करे। अब जबकि अदालत इसका फैसला जल्द ही सुनाने वाली है, तब सभी को इसे सकारात्मक भाव से ग्रहण करना चाहिए और इसको किसी एक पक्ष की हार, दूसरे की जीत के रूप में नहीं देखना चाहिए। यह न्याय की जीत होगी लिहाजा इस निर्णय पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। इस मसले पर सियासी दांव-पेचों की बहुत बड़ी कीमत देश की जनता ने चुकाई है। इसके कारण विकास के कई अजेंडे पीछे छूट गए हैं। वक्त बीती बातों को भुलाकर उन कामों को आगे बढ़ाने का है। हमें अपने व्यवहार से दुनिया को संदेश देना होगा कि अपने मसले हम एक परिपक्व राष्ट्र की तरह सुलझाने में सक्षम हैं।