पिछले कुछ साल से दुनिया भर से आ रही ख़राब आर्थिक ख़बरों के बावजूद देश के अर्थशास्त्री इस बात पर संतोष जता रहे थे कि भारत की अर्थव्यवस्था में भले ही गिरावट दिख रही हो, फिर भी यह दुनिया की सबसे तेज़ी से तरक्की करती अर्थव्यवस्थाओं में है। इस साल मार्च महीने के बाद से यह साफ हो गया था कि कोरोना वायरस अब सारे समीकरणों को बदल देगा। लेकिन यह समीकरण अचानक ही सिर के बल खड़े दिखाई देंगे, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था।
सबसे बुरा हाल!
पिछले साल की आखिरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की जो विकास दर फिसल कर 3.1 प्रतिशत पर पहुँच गई थी, अब वह गोता लगाकर शून्य से नीचे यानी -23.9 प्रतिशत गिर गई है। चीन को अगर छोड़ दें तो हाल पूरी दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं का भी बहुत बुरा है। सभी शून्य के नीचे पहुँच गई हैं, लेकिन जितनी गिरावट भारत में देखने को मिली है, वह कहीं नहीं है।
राहत पैकेज?
यह आँकड़ा एक और चीज बताता है कि अर्थव्यवस्था को राहत देने के पैकेज के नाम पर जो लंबे चैड़े दावे किए गए थे, उसका ज़मीन पर कोई असर नहीं पड़ा है। दावा लुढ़कती अर्थव्यवस्था को ऊपर ले जाने का था, लेकिन यह पैकेज उसे डूबने से भी नहीं बचा सका।
अनौपचारिक क्षेत्र
यह वह वर्ग है, जिसके सही आँकड़े कभी हम तक नहीं पहुँच पाते हैं। इसलिए इस बार जब उनकी हालत वाकई बहुत ख़राब है, और बहुत सारे तो शहरों-कस्बों की अपनी कर्मभूमि को छोड़कर जा चुके हैं तो उनके बारे में सही आँकड़े जुट पाए होंगे, इसकी उम्मीद बहुत कम है।
मुद्रास्फीति
सिर्फ जीडीपी के आँकड़ों से हम यह ठीक से नहीं समझ सकते कि यह कहर जनता पर क्या असर दिखा रहा होगा। इसे समझने का सबसे अच्छा तरीका है कि इसकी तुलना मुद्रास्फीति यानी महंगाई के आँकड़े से की जाए। पिछले दिनों महंगाई के जो आँकड़ें हमे मिले थे, उनके हिसाब से जुलाई में मुद्रास्फीति की दर 5.33 प्रतिशत थी।
सिकुड़ती अर्थव्यवस्था
नरसिम्हा राव की सरकार के जमाने में वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने इसे साधने की कोशिश की थी और उसके बाद की सभी सरकारों ने इसे मोटे तौर पर बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ने दिया था। इसके बाद यह संतुलन नोटबंदी के समय ही गड़बड़ाया था। लेकिन अब तो यह अस्वीकार्य बल्कि भयानक स्तर तक पहुँच गया है।
चौपट निर्माण क्षेत्र
सरकार ने जो ताज़ा आँकड़े जारी किए हैं, उनमें सबसे डराने वाला तथ्य यह है कि निर्माण क्षेत्र में आई गिरावट 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा है, जबकि यही वह क्षेत्र है जो गाँवों से शहरों की ओर पलायन करने वाली एक बड़ी आबादी का पेट पालता रहा है। भारत में अभी तक मैन्युफ़ैक्चरिंग क्षेत्र पूरी तरह विकसित नहीं हो सका है, इसलिए अकुशल मजदूरों का सबसे बड़ा ठौर यही है।