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पिछले सप्ताह, उइगर मुस्लिमों के खिलाफ चीन के अमानवीय बर्ताव के खिलाफ पहली बार वैश्विक मंच पर 22 पश्चिमी देशों ने सामूहिक आवाज उठाई. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद के उच्चायुक्त ने अपने साझा बयान में कहा, आलोचक देशों ने चीन में बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे डिटेंशन कैंप और मुस्लिमों की कड़ी निगरानी करने की रिपोर्ट्स पर बीजिंग की आलोचना की.
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पश्चिमी देशों के इस कदम के एक दिन बाद ही 37 देश बीजिंग के बचाव में कूद आए और चीन के मानवाधिकार को लेकर रिकॉर्ड की तारीफ करने वाला एक पत्र भी भेज दिया. इन देशों ने चीन के शिनजियांग प्रांत में 20 लाख मुस्लिमों को हिरासत कैंपों में रखे जाने की रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया. इनमें से आधे से ज्यादा हस्ताक्षरकर्ता मुस्लिम बहुल देश थे जिसमें पाकिस्तान, कतर, सीरिया, यूएई और सऊदी अरब का नाम भी शामिल था.
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इस पत्र की कॉपी को हासिल करने वाली रॉयटर एजेंसी के मुताबिक, इन देशों ने कहा कि आतंकवाद और कट्टरपंथ की गंभीर समस्या से जूझ रहे चीन आतंकवाद-निरोधी और कट्टरपंथ को रोकने के लिए कई कदम उठा रहा है जिसके तहत प्रशिक्षण कैंप भी खोले गए हैं. इस पत्र में यह भी कहा गया है कि इस क्षेत्र में कोई आतंकी हमला भी नहीं हुआ है, यहां के लोग खुश, संतुष्ट और सुरक्षित महसूस करते हैं.
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मुस्लिम बहुल देशों के लिखे इस पत्र की भाषा बिल्कुल चीन के दावों से मिलती है जिसमें वह शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों के खिलाफ प्रताड़ना और हिरासत कैंपों में रखे जाने के आरोप को खारिज करता रहा है और डिंटेशन कैंपों को आतंकवाद और इस्लामिक कट्टरपंथ से लड़ने के लिए प्रशिक्षण कैंप करार देता रहा है.
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शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों के खिलाफ चीन के अत्याचार की दास्तां अक्सर सामने आती रहती हैं. कई मुस्लिम नागरिकों को हिंसा के बलबूते जबरन उनके परिवार से दूर डिटेंशन कैंपों में भेज दिया जाता है. ‘काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से भागने में कामयाब रहे कुछ मुस्लिमों का कहना है कि उन्हें जबरन इस्लाम का त्याग करने के लिए मजबूर किया गया और चीन की सत्तारूढ़ पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा दिलवाई गई.
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फरवरी 2019 में क्राउन प्रिंस MBS ने एशिया और चीन का दौरा करने का फैसला किया और चीन ने भी रेड कार्पेट बिछाकर उनका स्वागत किया. खुद को मुस्लिम दुनिया का संरक्षक बताने वाले MBS अपने होस्ट चीन का उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर पूरी तरह से बचाव करते नजर आए. उन्होंने कहा था, ‘हम आतंकवाद खत्म करने और राष्ट्रीय सुरक्षा के चीन के अधिकार का सम्मान करते हैं.’
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चीन सऊदी अरब का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. आर्थिक नजरिए से देखें तो क्राउन प्रिंस का मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे पर बीजिंग को समर्थन देना पूरी तरह से हैरान करने वाला भी नहीं है. आर्थिक हित सबसे ऊपर होते हैं और इस दौरे में भी राजनीतिक, धार्मिक और वैचारिक मतभेद व्यापार करने के रास्ते में कोई बड़ी अड़चन साबित नहीं हुए. अब दूसरे मुस्लिम देश भी इसी गणित पर चलने की कोशिश कर रहे हैं.
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विश्लेषक इब्राहिम कहते हैं, इन देशों को एहसास हो गया है कि यूएस खासकर वर्तमान को देखते हुए, बहुत भरोसेमंद दोस्त नहीं है. चीन लंबे वक्त में ज्यादा महत्वपूर्ण और विश्वसनीय साबित हो सकता है, खासकर ऐसे समय में जब सऊदी अरब जैसे देशों में खशोगी की हत्या के बाद से राजनीतिक पतन शुरू हो चुका है.
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मुस्लिम एकता का मिथक
इब्राहिम कहते हैं, कई दशकों से मुस्लिम नेताओं ने फिलिस्तीन से लेकर कोसोवो में मुस्लिमों की दुर्दशा जैसे मुद्दों पर एकजुटता दिखाने की कोशिश की. लेकिन ये सारी वजहें उनके लिए राजनीतिक तौर पर भी सहूलियत भरी थी. लेकिन उइगर मुस्लिमों के मामले में राजनीतिक कीमत बहुत महंगी पड़ सकती है. मुझे नहीं लगता है कि मुस्लिम एकता जैसी कोई चीज कभी रही भी है. मुझे लगता है कि इस बार के मुद्दे से यह बात और साफ तौर पर उजागर हुई है./पिछले कुछ वर्षों में, मुस्लिम आबादी को लेकर वैश्विक मुद्दे पर इस्लामिक दुनिया बंटी नजर आई है. जहां ईरान ने सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के देश में विद्रोहियों के दमन करने का समर्थन किया, वहीं सऊदी अरब और इसके सहयोगियों ने विद्रोहियों के पक्ष में खड़े हुए. इराक, ईरान, यमन और बाकी हिस्सों में भी मुस्लिम देशों के बीच मतभेद दिखा है.
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चीन के मुद्दे पर कई मुस्लिम देश भी एक ही राग गाते नजर आ रहे हैं. रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूट के एक वरिष्ठ एसोसिएट फेलो एच.ए. हेलियर ने कहा, मुस्लिमों के प्रति चीन का रवैया ऐसा मामला नहीं है जो अरब दुनिया को बांट रहा हो. वे भले ही खाड़ी अरब संकट, सीरिया, यमन, ईरान या अन्य मुद्दों पर एक-दूसरे से बिल्कुल असहमत हों लेकिन तुर्की समेत अरब दुनिया के किसी भी मुस्लिम नेता को बीजिंग के पीछे खड़ा होने में शायद ही किसी तरह का मलाल हो.
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इब्राहिम के मुताबिक, चीन दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदाता देश है. दुनिया भर के मुस्लिमों के संघर्षों पर आवाज उठाने वाले पाकिस्तान में तो चीन के खिलाफ कुछ बोलना ही टैबू है. चीन की आर्थिक मदद ने पाकिस्तान को कई मौकों पर डूबने से बचाया है. चीन के व्यापार पर हद से ज्यादा निर्भर कई अन्य मुस्लिम देश तुर्केमेनिस्तान और तजाकिस्तान ने भी शुक्रवार को लिखे पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. यूएई और कतर जो छोटे लेकिन समृद्ध देश हैं, मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ चीन की नीतियों के खिलाफ आवाज उठा सकते थे लेकिन उन्होंने भी समर्थन वाले पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए.
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय के शिनजियांग प्रांत में चीन की नीतियों को चुनौती देने की कोशिशों को बेकार करने और मुस्लिमों के खिलाफ प्रताड़ना के तमाम सबूतों पर आंखें मूंद लेने के अलावा चीन के सहयोगियों का अपना भी एक हित है- जब मानवाधिकारों की मामले हो तो संप्रभुता को शीर्ष पर रखा जाए. यूएई और कतर समेत कई हस्ताक्षरकर्ता देश खुद कई मौकों पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के आरोपी रहे हैं. हेलियर कहते हैं, ‘हम अपनी सीमाओं के भीतर जो कुछ करना चाहें, कर सकते हैं’ का विचार अपनाने में सभी अथॉरिटेरियन नेताओं के साझा हित हैं.
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इब्राहिम कहते हैं, उइगर मुस्लिमों पर चीन का बचाव करके मुस्लिम हस्ताक्षरकर्ताओं ने बीजिंग के सामने अपनी विश्वसनीयता पेश की है. उन्होंने आगे कहा, मुस्लिम देश इस अपराध में सह-भागीदार हैं. वे मुस्लिमों के खिलाफ अत्याचार में खुद ही चीन की ढाल बने हुए हैं.