नेपाल दूतावास के ज़रिये भारत को भेजी गई एक राजनयिक टिप्पणी में कहा गया है कि भारतीय मीडिया के एक वर्ग द्वारा प्रसारित ‘फ़र्ज़ी’ सामग्री ‘नेपाल और वहां के नेतृत्व के प्रति असंवेदनहीन है.’ उसने इस बारे में भारत से क़दम उठाने का अनुरोध किया है.
काठमांडू: नेपाल द्वारा भारत को एक ‘राजनयिक टिप्पणी’ (डिप्लोमैटिक नोट) भेजी गई है और अपने देश तथा नेताओं के खिलाफ ऐसे कार्यक्रमों के प्रसारण पर कदम उठाने का अनुरोध किया है, जो उसके मुताबिक ‘फर्जी, आधारहीन और असंवेदनहीन होने के साथ ही अपमानजनक’ हैं.
नेपाल ने भारतीय मीडिया के एक वर्ग पर इस तरह के कार्यक्रमों के प्रसारण का आरोप लगाया है. एक सूत्र ने रविवार को यह जानकारी दी.
नेपाली प्रधानमंत्री के एक सहायक के मुताबिक, नई दिल्ली स्थित नेपाल दूतावास के जरिए विदेश मंत्रालय को शुक्रवार को दी गई राजनयिक टिप्पणी में कहा गया है कि भारतीय मीडिया के एक वर्ग द्वारा प्रसारित की जा रही सामग्री ‘ नेपाल और नेपाली नेतृत्व के प्रति फर्जी, आधारहीन और असंवेदनहीन होने के साथ ही अपमानजनक भी है.’
नोट में कहा गया है, ‘ऐसी सामग्री न केवल भ्रामक और गलत है, बल्कि न्यूनतम सार्वजनिक शालीनता की सीमाओं को भी लांघती है.’
इसमें भारतीय अधिकारियों से अनुरोध किया गया है कि इस तरह की सामग्री के प्रसारण के खिलाफ कदम उठाए जाएं और सुनिश्चित किया जाए कि मीडिया में ऐसी सामग्री न आए.
बता दें कि इससे पहले बीते 9 जुलाई को नेपाल के केबल टेलीविजन सर्विस प्रोवाइडर्स ने दूरदर्शन को छोड़कर अन्य सभी भारतीय समाचार चैनलों का प्रसारण बंद कर दिया था.
ऐसा आरोप लगाया गया था कि वे चैनल ऐसी सामग्री प्रसारित कर रहे थे, जो नेपाल की राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुंचाती है. इसके बाद नेपाल ने लगभग 20 भारतीय समाचार चैनलों को बंद कर दिया था.
इस मामले में भारत ने तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी.
अब नेपाल ने इस नोट में कहा है, ‘गलत इरादे से भारतीय मीडिया के एक वर्ग के द्वारा चलाए गए बदनाम करने के अभियान ने नेपाल के लोगों की भावनाओं और नेपाल के नेतृत्व की छवि को ठेस पहुंचाई है.’.
इसके अलावा फेडरेशन ऑफ नेपाली जर्नलिस्ट्स, प्रेस काउंसिल नेपाल और अन्य मीडिया संगठनों ने भी भारतीय मीडिया रिपोर्टों के खिलाफ बयान जारी किए थे.
भारत और नेपाल के रिश्तों में तनाव 8 मई से बढ़ा जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड के धारचूला से लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली सड़क का उद्घाटन किया था.
इस बारे में नेपाल ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए दावा किया था कि यह नेपाल की सीमा से होकर गुजरती है. भारत ने इस दावे को ख़ारिज करते हुए कहा था कि सड़क भारत की सीमा में ही है.
इसके बाद नेपाल ने अपने देश का नया नक्शा अपडेट किया था, जिसे संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिल गई थी.
इस नए नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल ने अपने क्षेत्र में दिखाया है, जो उत्तराखंड का हिस्सा हैं. इस पर भारत ने निराशा जाहिर की थी.
नेपाल के मीडिया के अनुसार, भारत द्वारा इस बारे में उनके देश को डिप्लोमैटिक नोट भेजा गया था.
इसके बाद नेपाल की संसद में बीते 23 जून को नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किया गया है, जिसमें कहा गया है कि नेपाली पुरुषों से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को नागरिकता देने में 7 साल का वक्त लगेगा.
ऐसा माना जा रहा है कि भारत-नेपाल रिश्ते की कड़वाहट के बीच भारत को निशाना बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया क्योंकि भारत-नेपाल के सीमावर्ती हिस्सों में दोनों देशों के लोगों के बीच शादी जैसे संबंध आम बात है.
इसी दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री केपी प्रधानमंत्री ओली और सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी)के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ समेत उनके प्रतिद्वंद्वियों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए थे.
प्रचंड ने ओली पर बिना किसी सलाह के फैसला लेने और तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाया था, इसके बाद प्रधानमंत्री ओली ने दावा किया था कि उनकी सरकार द्वारा देश के राजनीतिक मानचित्र को बदले जाने के बाद उन्हें पद से हटाने की कोशिशें की जा रही हैं.
उन्होंने इसका इल्जाम भारत को दिया था. ओली ने दावा किया था, ‘मुझे सत्ता से हटाने की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन वे कामयाब नहीं होंगी.’ उन्होंने कहा, ‘किसी ने भी खुले तौर पर उनसे इस्तीफा देने को नहीं कहा, लेकिन मैंने अव्यक्त भावों को महसूस किया है.’
उनका यह कहना था, ‘दूतावासों और होटलों में अलग-अलग तरह की गतिविधियां हो रही हैं. अगर आप दिल्ली के मीडिया को सुनेंगे तो आपको संकेत मिल जाएगा.’
उन्होंने यह भी कहना था कि नेपाल के कुछ नेता भी तत्काल उन्हें हटाने के खेल में शामिल हैं. इनके इस बयान की एनसीपी के नेताओं ने खासी आलोचना की थी.
ओली का इस्तीफा मांगने वाले पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड का कहना था कि कि ओली की हालिया भारत विरोधी टिप्पणियां न तो राजनीतिक रूप से सही थीं और न ही कूटनीतिक रूप तौर पर.