लखनऊ
12 जनवरी 2019 को जब बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की सुप्रीमो मायावती ने कहा कि देशहित में गेस्ट हाउस कांड को किनारे रखते हुए उन्होंने समाजवादी पार्टी (एसपी) से दोस्ती की है तो सियासी विश्लेषकों को लगा कि यह साथ लंबा चलेगा। इस गठबंधन को यूपी की सियासत में गेमचेंजर के तौर पर देखा गया। लेकिन महज छह महीनों के अंदर ही मायावती और अखिलेश यादव की राहें जुदा हो गई हैं। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों की दोस्ती कांशीराम-मुलायम के दौर में हुए गठबंधन से भी कम अरसे के लिए अस्तित्व में रही।
1993 में मिले मुलायम-कांशीराम
‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम।’ 1993 में मुलायम सिंह और कांशीराम जब एसपी-बीएसपी गठबंधन के पहली बार सूत्रधार बने थे तो राम लहर पर सवार बीजेपी का रथ रुक गया था। इस दोस्ती की बदौलत यूपी में दलित-मुस्लिम और पिछड़ों का ऐसा मजबूत समीकरण बना कि अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने के बाद हुए विधानसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी ने बीजेपी को शिकस्त दे दी। नवंबर 1993 में हुए इस चुनाव में जहां बीजेपी ने 33.3 फीसदी वोट हासिल करते हुए 177 सीटें जीतीं, वहीं एसपी ने 109 ( 17.94 फीसदी वोट) और बीएसपी (11.12 फीसदी वोट) ने 67 सीटों पर कब्जा जमा लिया। दिसंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव सीएम बने और बीएसपी ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया।
डेढ़ साल चली दोस्ती, गेस्ट हाउस कांड से दरार
मुलायम और कांशीराम की दोस्ती तकरीबन डेढ़ साल तक तो ठीकठाक चली लेकिन जून 1995 आते-आते इसमें खटास आ गई। 2 जून 1995 को मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके साथ ही एसपी की सरकार अल्पमत में आ गई। सरकार को बचाने के लिए जोड़-तोड़ का दौर शुरू हो गया। मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर-1 में मायावती ठहरी हुई थीं। आरोप है कि इस दौरान वहां पहुंचे एसपी के दबंग विधायकों ने मायावती से बदसलूकी करते हुए उन्हें जान से मारने की कोशिश की।