15.1 C
New Delhi
Friday, January 17, 2025

पत्नी का पर्दा न करना पति को तलाक देने का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाई कोर्ट

Must read

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पति की इस दलील को मानने से इनकार कर दिया है कि पत्नी के पर्दा न करने से उसे मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक देने का अधिकार मिल सकता है।

नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार, जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की पीठ ने मानसिक क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करने वाली याचिका को खारिज किए जाने के खिलाफ पति की ओर से दायर अपील पर सुनवाई की। इस दौरान पीठ ने पति की दलील को मानने से इनकार कर दिया। हालांकि, विवाह को खत्म करने की मांग वाली याचिका को कोर्ट ने स्वीकार करते हुए किसी प्रकार की एलुमनी राशि का प्रावधान न होने का फैसला दिया।

जस्टिस सिंह की अगुवाई वाली पीठ ने क्रूरता के मुद्दे पर अपने फैसले में इस दलील को मानने से इनकार कर दिया कि पत्नी एक स्वतंत्र मानसिकता की है। वह बाजार और अन्य स्थानों पर अपनी मर्जी से जाती थी और पर्दा नहीं करती थी। पीठ ने कहा कि पत्नी अगर अपने से काम करती है। किसी व्यक्ति के साथ अवैध या अनैतिक संबंध बनाए बिना उसके साथ या अकेले यात्रा करती है। या फिर, समाज में अन्य लोगों से मिलती-जुलती है, इन तथ्यों के आधार पर इस प्रकार के कार्यों को क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्रूरता को लेकर पति की ओर से दिए गए तर्कों को नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि पति की ओर से पत्नी की अपनी मर्जी से घूमना, बाजार जाना, अन्य लोगों से मिलना, पर्दा न करना जैसे कृत्यों को मानसिक क्रूरता का नाम दिया गया है। इसके लिए पत्नी को जिम्मेदार ठहराया गया है, इसे क्रूरता के कृत्यों के रूप में स्वीकार करना कठिन है। कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष अच्छी तरह शिक्षित हैं। अपीलकर्ता पति एक योग्य इंजीनियर है, जबकि प्रतिवादी पत्नी एक सरकारी शिक्षक है।

हाई कोर्ट ने कहा कि जीवन के प्रति धारणा के अंतर व्यक्तियों की ओर से अलग-अलग व्यवहार को जन्म दे सकती है। धारणा और व्यवहार के ऐसे अंतर को दूसरे व्यक्ति की ओर से दूसरे के व्यवहार को देखकर क्रूरता के रूप में वर्णित किया जा सकता है। साथ ही, ऐसी धारणाएं न तो निरपेक्ष हैं और न ही ऐसी हैं जो खुद क्रूरता के आरोपों को जन्म देती हैं।

कोर्ट ने कहा कि जब तक कि देखे गए और सिद्ध तथ्य ऐसे न हों, जिन्हें कानून में क्रूरता के कृत्य के रूप में मान्यता दी जा सके। इसे मान्यता देना कठिन है। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने पत्नी द्वारा किए गए अपमान की दलील पर कार्रवाई न करने के पारिवारिक न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा। उन्होंने कहा कि पति ने इस तरह के कृत्यों का समय या स्थान के विवरण के साथ वर्णन नहीं किया है, न ही उन्हें निचली अदालत के समक्ष सिद्ध किया गया है।

पीठ ने कहा कि प्रतिवादी (पत्नी) पर आरोपित अनैतिक संबंधों के कृत्य के संबंध में अपीलकर्ता (पति) ने कोई निर्णायक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया। इसके अलावा प्रतिवादी (पत्नी) की ओर से ‘पंजाबी बाबा’ कहे जाने वाले व्यक्ति के साथ अनैतिक संबंध बनाने के आरोप के अलावा, कोई अन्य तथ्य सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया गया। कोई प्रत्यक्ष या विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सका।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पति को एक मामले में राहत भी दी। कोर्ट ने कहा कि पति पत्नी पर इस आधार पर मानसिक क्रूरता का दावा कर सकता है कि उसने उसे बहुत लंबे समय तक छोड़ दिया है। साथ ही, पीठ ने कहा कि पत्नी का जानबूझकर किया गया ऐसा कृत्य क्रूरता के दायरे में आ सकता है। पत्नी ने अपने वैवाहिक संबंध को बचाने के लिए अपीलकर्ता पति के साथ सहवास करने से इनकार किया। यह परित्याग का कृत्य प्रतीत होता है। यह स्वयं उसके विवाह के विघटन का कारण बन सकता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने न केवल पति के साथ रहने से इनकार किया है, बल्कि उसने कभी भी अपने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करने का कोई प्रयास नहीं किया। विवाह खत्म यानी तालिका की याचिका को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष लाभकारी नौकरी करते हैं। उनका एकमात्र बच्चा उसकी पत्नी की देखरेख में है। उसकी उम्र लगभग 29 वर्ष है। इसलिए न तो कोई प्रार्थना की गई है। न ही स्थायी गुजारा भत्ता प्रदान करने का कोई अवसर मौजूद है।

- Advertisement -spot_img

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

Latest article