अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता पर काबिज होने जा रहा है। अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद इतनी जल्दी तालिबान पूरे अफगानिस्तान पर कब्जे से पूरी दुनिया हैरान है, लेकिन वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि तालिबान के इतनी तेजी से कब्जे से उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई। तालिबान से बातचीत नहीं करने के भारत सरकार के रुख पर उन्होंने सवाल उठाए हैं।

उन्हों ने कहा, ‘मैं अफगानिस्तान पर 55 साल से काम कर रहा हूं। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि तालिबान को लेकर भारत सरकार पहले क्यों नहीं जागी? मैंने विदेश मंत्रालय के सीनियर अधिकारियों को 4 दिन पहले ही कहा था कि राजदूतों और वहां फंसे हमारे लोगों को वापस लाने की तैयारी कीजिए।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को कहा कि जिन देशों के हजारों सैनिकों को तालिबान ने मार दिया, अगर वो मुल्क तालिबान से बात कर रहे हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते? तालिबान हमारा दुश्मन नहीं है, वो पाकिस्तान के जरूर ऋणी हैं, क्योंकि उनको पाकिस्तान की मदद मिलती है।’

उन्होंने अपनी बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘कंधार में जब एयर इंडिया का विमान अपहरण के बाद ले जाया गया था तो पीएम वाजपेयी के कहने पर मैंने तालिबान के मुल्ला उमर से बात की थी और तालिबान हमारे विमान को छोड़ने को तैयार हुआ था। हाल ही में कश्मीर को तालिबान ने भारत का अंदरुनी मामला भी बताया है। हमें यथार्थवादी होना चाहिए और तालिबान से बातचीत को लेकर ज्यादा हिचकना नहीं चाहिए।’

वेद प्रताप वैदिक ने भारत सरकार के रुख पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘जब सभी देश बात कर रहे हैं तो हमें किसने बातचीत करने से रोका है, हम अमेरिका के पिछलग्गू क्यों बने हैं। भारत के राजदूत तालिबान से क्यों बात नहीं कर रहा है। हमारा विदेश मंत्री क्या कर रहा है, रॉ क्या कर रही है? पीएम ने स्वतंत्रता दिवस के दिन भाषण दिया, उसमें अफगानिस्तान का जिक्र नहीं, इसे लेकर कोई चिंता ही नहीं है। अफगानिस्तान अगर भारत के दुश्मनों के हाथ में चला गया तो चाबहार बंदरगाह के प्रॉजेक्ट का क्या होगा, सेंट्रल एशिया के लिए मार्ग का क्या होगी?’

वैदिक ने कहा कि काबुल में किसी की सरकार बनने का सबसे ज्यादा असर पहले तो पाकिस्तान पर पड़ेगा, फिर भारत पर इसका असर होगा। फिर भी रूस, चीन, अमेरिका, तुर्की ईरान, सऊदी अरब आदि तालिबान से बात कर रहे हैं, लेकिन भारत कोई बातचीत नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कहा कि भारत को सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में अफगानिस्तान में शांति सेना भेजे जाने का प्रस्ताव लाना चाहिए था, उसके बाद अशरफ गनी और तालिबान मिलकर एक संयुक्त सरकार बनवानी चाहिए थी, उसके बाद चुनाव होने चाहिए थे। अगर वहां की जनता तालिबान को चुनती तो फिर उसका फैसला मानना चाहिए था।

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