तेज़ी से फैलते कोरोना संक्रमण और रोज़ाना आने वाले मामलों की रफ़्तार ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या एक बार फिर लॉकडाउन लगाया जाएगा। कोरोना संक्रमण में महाराष्ट्र सबसे आगे है और इसी राज्य में कुछ जगहों पर सीमित लॉकडाउन का प्रयोग भी किया गया है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने तो टास्कफ़ोर्स की बैठक में कह दिया कि अब लॉकडाउन की तैयारी की जाए।

पर क्या पूर्ण लॉकडाउन अब मुमकिन है और क्या इससे समस्या का निदान निकल सकता है?

संक्रमण की रफ़्तार तेज़

पिछले साल जिस समय कोरोना संक्रमण की पहली खबर आई उस समय से लेकर 2 मार्च तक कोरोना संक्रमितों की संख्या 100 पहुँचने में 14 दिन लगे थे। लेकिन जिस दिन लॉकडाउन का एलान किया गया, उस दिन यानी 24 मार्च को कोरोना पीड़ितों की तादाद 525 हो गई थी। यह संख्या 29 मार्च को 1,000 हो गई थी तो 13 अप्रैल को कोरोना संक्रमितों की संख्या 10,000 पार कर चुकी थी।

इस बार जब संक्रमण की दूसरी लहर चल रही है, रफ़्तार पहले से तेज है।

इस साल फरवरी में जब संक्रमण की दूसरी लहर आई, लगभग 1.1 करोड़ लोग प्रभावित हो चुके थे। इसके पहले दिसंबर में हुए सीरोसर्वे से पता चला था कि 20 से 30 प्रतिशत लोग कोरोना से संक्रमित हो गए थे।

लॉकडाउन लगना चाहिए

तो यह सवाल स्वाभाविक है क्या अब लॉकडाउन लगा देना चाहिए?

पूर्ण लॉकडाउन सिर्फ काल्पनिक स्थिति है। पिछले साल 24 मार्च से 1 मई तक का लॉकडाउन पूर्ण लॉकडाउन माना जा सकता है। लेकिन उस दौरान भी आवाजाही और कामकाज शून्य नहीं हुआ था। यह संभव भी नहीं था। डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ और अस्पतालों में काम करने वाले दूसरे लोग तो अपना-अपना काम कर ही रहे थे, वे घर से अस्पताल भी जा रहे थे। इसी तरह खाने-पीने की चीजें, दूध, दवा, फोन और इंटरनेट जैसी आवश्यक सेवाएं चल रही थीं और इससे जुड़े लोग भी आवाजाही कर रहे थे।

इस लॉकडाउन की भारी कीमत लोगों को चुकानी पड़ी थी। अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर शून्य से बहुत नीचे चली गई और करोड़ों लोगों की रोज़ी-रोटी छिन गई।

लेकिन यह भी सच है कि इस लॉकडाउन की वजह से लाखों लोगों की जिन्दगी बच गई।

इंतजाम अच्छा नहीं था?

लेकिन दूसरी कुछ बातों पर भी ध्यान देना चाहिए। अगस्त 2020 में कोरोना मृत्यु दर 3 प्रतिशत थी। कोरोना के साथ दूसरे रोगों से लोगों की मृत्यु अधिक हो रही थी। जाँच कम हो रहे थे, वे महंगे भी थे। अस्पतालों की स्थिति बहुत ही बुरी थी। वेंटीलेटर व ऑक्सीजन की अच्छी व्यवस्था नहीं थी। जून 2020 में रोजाना दो लाख जाँच हो रही थी, यह जुलाई में बढ़ कर पाँच लाख और अगस्त में दस लाख पहुँची। बाद में इसे और बढाया गया और अक्टूबर के बीच तक 14 लाख टेस्ट रोज़ाना होने लगे।

अधिक जाँच और ज्यादा से ज़्यादा लोगों को आइसोलेशन में रखने का सीधा फ़ायदा दिखा था।

हालांकि एक बार फिर कोरोना संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है, लेकिन यह भी साफ़ है कि लॉकडाउन की न तो ज़रूरत है न ही इस बार वह मक़सद पूरा कर पाएगा।जिस तरह पिछले साल जुलाई-अगस्त में अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों की भीड़ उमड़ रही थी, फिलहाल अस्पतालों की वह स्थिति नहीं है।

फ़िलहाल मृत्यु दर कम है, कोरोना रोग पहले से कम ख़तरनाक है, लोगों की जाँच, इलाज और दवा की स्थिति पहले से बेहतर है। लोगों में जागरूकता पहले से अधिक है और पिछली बार की तरह घबराहट भी नहीं है।

छिटफुट लॉकडाउन से फ़ायदा?

कई जगहों पर सीमित और छिटपुट लॉकडाउन हो रहे हैं, उनके प्रभाव पर सवाल उठना लाजिमी है। रात के कर्फ्यू या सप्ताह के अंत का लॉकडाउन या एक-दो सप्ताह का लॉकडाउन कितना प्रभावी होगा, इस पर सवाल उठ रहे हैं। अभी तक इसका कोई साक्ष्य नहीं है कि इसका कोई फ़ायदा होगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा हालात में सबसे अच्छा यह होगा कि लोगों की जाँच, उनकी निगरानी और उनके इलाज पर अधिक ध्यान दिया जाए। लोगों को घर पर ही आइसोलेट किया जाए। इससे संक्रमण को काफी हद तक रोका जा सकता है।

लेकिन इसके लिए यह ज़रूरी है कि जाँच की रफ़्तार बढ़ाई जाए। पिछले साल अक्टूबर में जाँच अपने चरम पर था, उन दिनों कुछ दिनों तक 14 लाख लोगों की जाँच रोज़ाना की गई। फिलहाल उसके आसपास कहीं भी जाँच नहीं हो रही है। इसलिए ज़रूरी है कि रोज़ाना जाँच की संख्या बढ़ाई जाए।

लोगों का व्यवहार बदले

दूसरी बात यह है कि लोगों के व्यवहार में बदलाव आए। विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल डिस्टैंसिंग और मास्क इस रोग को फैलने से रोकना का सबसे कारगर उपाय है। लेकिन इस मामले में काफी लापरवाही बरती जा रही है। ज़्यादातर लोग न तो मास्क लगा रहे हैं न ही सोशल डिस्टैंसिंग का पालन कर रहे हैं।

राजनीतिक सभा हो, चुनाव प्रचार हो, धार्मिक उत्सव हो या सामाजिक कामकाज, मोटे तौर पर कहीं भी सोशल डिस्टैंसिंग का पालन नहीं हो रहा है। इसी तरह लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं। यह अधिक चिंता की बात है।

2020 की चौथी तिमाही से अब तक लगभग पाँच-छह महीने में कोरोना संक्रमण में कमी आई तो लोगों ने यह मान लिया कि महामारी अब खत्म हो गई है। लेकिन ऐसा नहीं है। महामारी मौजूद है, पहले से अधिक मामले आ रहे हैं, लेकिन वे पहले की तुलना में कम घातक हैं और उनसे निबटने की व्यवस्था पहले से बेहतर है।

ऐसे में यह जरूरी है कि जाँच, ट्रेसिंग, आइसोलेशन, मास्क और सोशल डिस्टैंसिंग पर ध्यान दिया जाए।

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