नीतीश कुमार ने कल 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। हर नेता का ये सपना होता है कि वो मंच पर खड़ा होकर एक दिन गर्वनर या राष्ट्रपति के साथ शपथ ले। नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ का 7 वीं बार अवसर मिला है। 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में इस बार जेडीयू के 43 MLA हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार को कमजोर माना जा रहा है। बिहार चुनाव में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी JDU को कमजोर करने में सबसे बड़ी भूमिका LJP के चिराग पासवान की रही है।

दूसरी तरफ ऐसा कहा जा रहा है कि 33 सीटों पर जेडीयू की हार LJP की वजह से हुई है। इन 33 में से 28 सीटें ऐसी हैं जहां जेडीयू दूसरे नंबर पर रही और हार का अंतर LJP को मिले वोटों से कम रहा। अगर इन सीटों पर LJP एनडीए से अलग नहीं होती तो जनता दल यूनाईटेड यहां चुनाव जीत जाती। इन 33 सीटों में 5 सीटें ऐसी हैं जहां LJP दूसरे नंबर रही और यहां पर JDU का नंबर तीसरा रहा है। मतलब यहां भी JDU और LJP की लड़ाई में तीसरी पार्टी का फायदा हुआ है।

बिहार में एनडीए सरकार के शपथ ग्रहण के बाद अब सभी की नजरें दिल्ली की ओर है जहां केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार की संभावना है। ऐसी संभावना है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद खाली हुआ एलजेपी कोटे का मंत्री पद चिराग पासवान को मिल सकता है। यदि चिराग पासवान केंद्र सरकार में मंत्री बनते हैं तो ये जेडीयू और नीतीश कुमार के लिए एक और झटका होगा।

बता दें कि पटना में संपन्न हुए शपथ ग्रहण समारोह के तुरंत बाद चिराग पासवान ने ट्वीट कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बधाई दी है लेकिन यहां भी चिराग तंज कसने से नहीं चूके। उन्हों ने अपने ट्वीट ​में लिखा है कि, “आशा करता हूं, सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी और आप NDA के ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। मतलब साफ है कि आने वाले दिनों में JDU और LJP का झगड़ा NDA को एकजुट रखने में चुनौती बना रहेगा।”

याद रहे कि बिहार के मुख्यमंत्री की 7वीं बार शपथ लेने के साथ ही नीतीश कुमार सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री बनने वाले नेताओं के क्लब में शामिल हो गए। 3 मार्च साल 2000 में वह पहली बार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन बहुमत न होने की वजह से उन्हें 10 मार्च 2000 को इस्तीफा देना पड़ा था। लगभग 47 वर्ष पहले जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। बिहार में वर्षों तक राजनीति करने वाले बड़े नेताओं ने अपनी शुरुआत इसी आंदोलन से की थी। नीतीश कुमार के साथ इन नेताओं में लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और रामविलास पासवान भी शामिल थे। नीतीश कुमार कुल मिलाकर 13 वर्षों से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

वैसे भारत में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग के नाम है। वो 24 वर्षों से ज्यादा समय तक सीएम थे। इस समय नवीन पटनायक लगातार 20 वर्षों से ज्यादा वक्त से ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं। ओडिशा में अगले विधानसभा चुनाव वर्ष 2024 में होंगे और अगर नवीन पटनायक तब तक मुख्यमंत्री रहे तो वो अपने इसी कार्यकाल में पवन चामलिंग का भी रिकॉर्ड तोड़ देंगे। लेकिन अगर बिहार में सबसे ज्यादा वक्त तक सीएम रहने के रिकॉर्ड की बात करें तो श्री कृष्ण सिन्हा का है। वो 14 वर्षों से अधिक समय तक बिहार के मुख्यमंत्री थे। हालांकि अब सीएम बनने के बाद नीतीश कुमार इनका रिकॉर्ड तोड़ देंगे। अगले 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा करने के बाद नीतीश कुमार 18 वर्ष से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रह चुके होंगे और वर्ष 2025 में वो बिहार में सबसे लंबे समय तक सीएम पद संभालने वाले नेता बन जाएंगे।

नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गए हैं लेकिन उनकी विचारधारा वाली कंफ्यूजन बिहार के लोगों को भी हैरान करती रही है। वो कभी RJD और कांग्रेस के साथ दिखाई देते हैं तो कभी वो NDA के नेताओं के साथ दिखते हैं। धारा 370 हटाने के फैसले की बात की जाए तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने राज्यसभा में इसका समर्थन नहीं किया था, वहीं NRC के मुद्दे पर नीतीश कुमार कई बार साफ कर चुके हैं कि बिहार में NRC लागू नहीं होगा।

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