अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन की जीत से जहां कई देश उत्साहित हैं तो वहीं कुछ देश असहज भी हुए हैं। हालांकि सऊदी अरब ने जो बाइडेन को बधाई भी दी है। लकिन ऐसा कहा जा रहा है कि सऊदी से ज्यादा शायद ही किसी देश को बाइडेन की जीत से नुकसान होने वाला है।

सऊदी के क्राउन प्रिंस की ट्रंप से काफी करीबी थी। कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति शपथ लेने के बाद पहला विदेशी दौरा कनाडा या मेक्सिको का करता था लेकिन ट्रंप ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुना था। ट्रंप सऊदी के लिए एक सुरक्षा दीवार की तरह थे। चाहे वो मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दा हो या यमन के युद्ध में उसकी भूमिका, ट्रंप प्रशासन ने हमेशा सऊदी का साथ दिया।

वहीं, अमेरिका के पूर्व उप-राष्ट्रपति बाइडेन ने चुनावी कैंपेन में संकल्प लिया है कि वो सऊदी के साथ संबंधों की समीक्षा करेंगे। इसके अलावा, बाइडेन यमन युद्ध में अमेरिकी मदद रोकने की भी बात कर चुके हैं। सऊदी के एक ट्विटर यूजर ने लिखा,सऊदी के लिए कोविड-19 से भी खराब अगर कोई चीज होगी तो वो बाइडेन-20 होंगे। सऊदी अरब के प्रमुख अखबार ओकाज ने भी अपने फ्रंट पेज के आर्टिकल में बाइडेन की जीत के बाद सऊदी के भविष्य को लेकर अनिश्चितता जाहिर की है।

ट्रंप के लिए अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कूटनीति, मानवाधिकार, लोकतंत्र, महिला अधिकार जैसे आधुनिक मूल्यों से ज्यादा अहम आर्थिक हित रहे। तुर्की स्थित सऊदी अरब के दूतावास में वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या को लेकर पूरी दुनिया में सऊदी अरब की आलोचना हुई लेकिन ट्रंप कांग्रेस के विरोध के बावजूद सऊदी को हथियार बेचते रहे। ट्रंप के उलट बाइडेन मानवाधिकार के मुद्दों को लेकर काफी आक्रामक हैं। बाइडेन ने चुनावी कैंपेन के दौरान साफ कहा है कि सऊदी को जमाल खशोगी की हत्या की कीमत चुकानी पड़ेगी। बाइडेन ने सत्ता में आते ही सऊदी को हथियारों की बिक्री बंद करने का भी वादा किया है।

यमन में सऊदी के युद्ध को लेकर भी बाइडेन ने तीखी टिप्पणी की थी और कहा था कि सऊदी के मौजूदा नेतृत्व में सामाजिक मूल्य नाम के रह गए हैं। सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने घरेलू राजनीति में भी अपने खिलाफ पनपे असंतोष को दबाने के लिए हर हथकंडा आजमाया है। क्राउन प्रिंस अपनी गद्दी के लिए खतरा बन रहे कई रिश्तेदारों को जेल भिजवा चुके हैं। यहां तक कि किंगडम के खिलाफ आवाज उठाने वाले कई ऐक्टिविस्टों को मौत की सजा दे दी गई। बाइडेन के कैंपेन के प्रवक्ता ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से कहा, ट्रंप की तरह दुनिया भर के तानाशाहों और ताकत का दुरुपयोग करने वाले नेताओं को ब्लैंक चेक देने के बजाय बाइडेन मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर दोस्तों और दुश्मनों के साथ एक ही तरह से पेश आएंगे।

सऊदी अरब अपने दुश्मन ईरान के खिलाफ ट्रंप की ‘अधिकतम दबाव की रणनीति’ का पुरजोर समर्थक था। ट्रंप ने 2018 में ईरान के साथ हुई परमाणु डील को खत्म कर दिया था और उस पर कई कड़े प्रतिबंध थोप दिए थे। इन प्रतिबंधों की वजह से ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा गई। हालांकि, बाइडेन ने वादा किया है कि वो वैश्विक ताकतों और ईरान के बीच साल 2015 में हुए परमाणु समझौते को बहाल कर देंगे। ये डील बराक ओबामा के कार्यकाल में हुई थी और बाइडेन उस वक्त उप-राष्ट्रपति की भूमिका में थे। हालांकि, रियाद सुपरमार्केट के एक कैशियर अबू जैद कहते हैं, मुझे उम्मीद है कि बाइडेन पहले से अलग रुख अपनाएंगे। मैं बाइडेन की जीत से खुश तो नहीं हूं लेकिन मुझे लगता है कि वो ओबामा की गलतियों से सीखेंगे और महसूस करेंगे कि ईरान हम दोनों का ही दुश्मन है।

साल 2015 में जब ओबामा प्रशासन ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था तो सऊदी ने अमेरिका को अपने पारंपरिक मित्रों का साथ छोड़ने और मुस्लिम ब्रदरहुड के ताकतवर होने को लेकर चेतावनी दी थी। सऊदी अरब आधारित गल्फ रिसर्चर सेंटर के चेयरमैन अब्दुल अजीज सेगर ने कहा, एक चिंता ये भी है कि बाइडेन की जीत के बाद अमेरिका का फोकस मध्य-पूर्व में बहुत ज्यादा नहीं रहेगा। इसके अलावा, बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका सऊदी और दूसरे खाड़ी देशों के प्रति ज्यादा सख्त रुख भी अपना सकता है।

खाड़ी के देश बाइडेन की जीत और उसके संभावित नतीजों को लेकर पहले से ही तैयारी कर चुके हैं। ईरान को रोकने के लिए खाड़ी देश इजरायल की मदद ले रहे हैं। यूएई ने यमन में अपनी सैन्य मौजूदगी घटा दी है और वो इजरायल के साथ संबंध बहाल करने वाला पहला अरब देश भी बन गया है। बहरीन भी यूएई की राह पर है। एक सूत्र ने कहा, खाड़ी के देश इजरायल के साथ संबंध बहाल करने में लगे हुए हैं क्योंकि कुछ महीने पहले ही उन्हें एहसास हो गया था कि शायद भविष्य में उनके पास अमेरिका का समर्थन ना रहे। इजरायल ऐसे में एक स्वाभाविक साझेदार है क्योंकि ईरान सऊदी के साथ-साथ इजरायल का भी दुश्मन है।

डेमोक्रेटिक पार्टी हो या रिपब्लिकन पार्टी की सरकार, सऊदी अरब और अमेरिका के हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं। साल 1943 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूसवेल्ट ने सऊदी अरब के प्रिंस फैसल और खालेद को व्हाइट हाउस आमंत्रित किया था। तब से लेकर आज तक अमेरिका के हर राष्ट्रपति ने सऊदी के साथ अपनी दोस्ती प्रगाढ़ की है। साल 1973 में सऊदी अरब ने अमेरिका को तेल की बिक्री पर रोक लगा दी थी लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने सऊदी का दौरा किया था और किंग फैसल की तारीफ की थी। डेमोक्रेटिक पार्टी के बराक ओबामा ने अपने दोनों कार्यकाल में सऊदी अरब का चार बार दौरा किया। ओबामा प्रशासन ने सऊदी अरब को रिकॉर्ड 100 अरब डॉलर से ज्यादा के हथियार बेचे। उस वक्त बाइडेन उप-राष्ट्रपति की भूमिका में थे। यहां तक कि ओबामा-बाइडेन प्रशासन ने यमन के युद्ध में सऊदी को सैन्य और कूटनीतिक मदद भी दी। ऐसे में, बाइडेन का नया रुख सऊदी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं हैं।

ब्रिटेन के थिंक टैंक चैटहैम के एसोसिएट फेलो नील किलीयम ने कहा कि सऊदी को शायद बहुत ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। बाइडन प्रशासन सऊदी की घरेलू और विदेश नीतियों को लेकर बहुत जल्द ही अपनी आपत्तियां जाहिर करेगा। उन्होंने कहा, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को चिंता सता रही है कि बाइडेन प्रशासन और कांग्रेस सऊदी के साथ अपने संबंधों की फिर से समीक्षा करेगा। इसमें सऊदी के साथ रक्षा संबंधों पर भी विचार किया जाएगा और यमन में संघर्ष को खत्म करने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे। हालांकि, सऊदी में अभी भी कुछ लोगों का कहना है कि अमेरिका में सरकार बदलने का असर दोनों देशों के संबंधों पर नहीं पड़ेगा क्योंकि अमेरिका संस्थाओं वाला देश है। सऊदी अरब और अमेरिका की संस्थाओं के बीच सहयोग पहले की तरह ही जारी रहेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here