बारिश में लगातार आ रही गिरावट के कारण दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में जल की स्थिति खराब होती जा रही है. देश में सूखे का संकट गहराता जा रहा है. आईआईटी गांधीनगर की ओर से जारी चेतावनी में कहा गया कि देश के 40 फीसदी क्षेत्रों में सूखे का संकट बना हुआ है.

‘जल ही जीवन है’ इस कहावत को हम सभी ने कई बार सुना तो जरूर होगा, लेकिन इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया होगा. अब लोग चेन्नईवासियों से पानी की अहमियत के बारे में पता करें तो मालूम होगा कि उन्हें इन दिनों पानी के लिए किस कदर संघर्ष करना पड़ रहा है. अभी सिर्फ चेन्नई ही जल संकट से जूझ रहा है, लेकिन देश में जिस तरह के हालात हैं और जलाशय, पोखरे और नदियां सूखती जा रही हैं, उससे तो यही लगता है कि कई अन्य शहर भी जल्द ही सूखे और प्यास की चपेट में आ जाएंगे.

जल संकट भारत की अहम समस्याओं में से एक है और यहां पर स्थिति बेहद खतरनाक स्तर पर जाती दिख रही है. यह लगातार दूसरा साल है जब देश में मॉनसून कमजोर रहा और इस कारण देश की आबादी के एक-तिहाई हिस्से यानी 33 करोड़ लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ा. बारिश में लगातार आ रही गिरावट के कारण दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में जल की स्थिति खराब होती जा रही है. देश में सूखे का संकट गहराता जा रहा है. आईआईटी गांधीनगर की ओर से जारी चेतावनी में कहा गया कि देश के 40 फीसदी क्षेत्रों में सूखे का संकट बना हुआ है.

21 बड़े शहरों पर जल संकट का खतरा

पिछले साल नीति आयोग की ओर से जारी की गई कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स (सीडब्ल्यूएमआई) के अनुसार 2020 तक देश के 21 बड़े शहरों (दिल्ली, बेंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद प्रमुख शहर) में ग्राउंडवाटर जीरो लेवल तक पहुंच जाएगा, जिससे यहां की 10 करोड़ से ज्यादा की आबादी जल संकट का सामना करेगी. आज की तारीख में देश की करीब 12 फीसदी आबादी गंभीर जल संकट का सामना कर रही है.

खराब जल संरक्षण ने बिगाड़ी स्थिति

ताबड़तोड़ ग्राउंड वाटर पंपिंग, जल संरक्षण की बेहद खराब व्यवस्था और अनियमित बारिश ने हालात को और खराब कर दिया है. सीडब्ल्यूएमआई की रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक देश में पानी की मांग दोगुनी हो जाएगी और इस कारण करोड़ों लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा. इससे देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6 फीसदी का नुकसान होगा.

इसके अलावा अंधाधुंध विकास कार्य और बेहिसाब तरीके से किए जा रहे निर्माण कार्यों ने भी कई शहरों के जलस्तर को काफी नीचे तक पहुंचा दिया है. विकास की दौड़ में हम पेड़ और जंगल खत्म करते जा रहे हैं तो पानी संरक्षण के बेहतर विकल्पों कुंओं, तालाब और पोखरों को खत्म कर जमीन बनाकर वहां इमारतें खड़ी की जा रही हैं, जिन्होंने जल संकट को और गहरा किया है.

कामयाब होगी 2024 की योजना!

केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार ने अपना दूसरा कार्यकाल इसी जल संकट के बीच शुरू किया है. नई सरकार ने जल शक्ति नाम से नया जल मंत्रालय बनाया है. मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी देश में जल संकट को कम करने की है और उसने ऐलान किया है कि मंत्रालय ने 2024 तक भारत में हर घर में पाइप के जरिए पानी का कनेक्शन देने की योजना बनाई है. लेकिन जिस तरह से जल संकट बना हुआ है और पीने वाले जल सूखते जा रहे हैं. ऐसे में सरकार जब तक पानी का संरक्षण नहीं करती तब तक ऐसे किसी लक्ष्य को हासिल कर पाना असंभव ही है.

बड़े शहरों को ज्यादा तवज्जो

अंधाधुंध विकास के चक्कर में हम जल से ज्यादा जमीन को तवज्जो दे रहे हैं और यह हालत स्थानीय नगर निकायों की है. भारतीय शहरों में जल वितरण की स्थिति असामान्य है क्योंकि राजधानी दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों को ज्यादा पानी दिया जा रहा है जबकि अन्य क्षेत्रों के लोगों को कम पानी मिलता है. डाउनटूअर्थ डॉट ओआरजी डॉट इन के मुताबिक बड़े शहरों में 150 लीटर पानी प्रति दिन प्रति व्यक्ति (एलपीसीडी) के हिसाब से दिया जाता है जबकि अन्य क्षेत्रों में 40 से 50 लीटर एलपीसीडी पानी दिया जाता है.

water-crisis-kok2_062519095346.jpgकोलकाता में गंगा नदी पर दिख रहा खासा दबाव (फोटो-शेखर घोष)

जरूरत के लिए चाहिए 25 लीटरः WHO

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार प्रति व्यक्ति को जरूरत के हिसाब से 25 लीटर पानी (पीने, खाना पकाने आदि चीजों के लिए) की दरकार होती है. इसके अलावा 70 लीटर से ज्यादा पानी साफ-सफाई जैसे कामों में खर्च होता है. पीने के पानी की तुलना में साफ-सफाई और बाग-बगीचे समेत अन्य चीजों में ज्यादा पानी (करीब 80 लीटर पानी) खर्च होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जीवन चलाने के लिए पानी पीने और खाना पकाने में जितना पानी खर्च होता है, उससे कहीं ज्यादा पानी कम जरूरी चीजों में खर्च होता है. इस तरह हर जगह ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि लोगों को जरूरत के हिसाब से पानी वितरित किया जाए.

बेहिसाब इस्तेमाल से आया संकट

जल संकट के लिए लोगों की ओर से पानी के असामान्य तरीके से इस्तेमाल भी अहम कारण हैं. एक तो बढ़ती आबादी और लगातार चल रहे निर्माण कार्यों से पानी की मांग बढ़ी है तो दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में पानी की बर्बादी भी ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों में पाइप के जरिए एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने वाले पानी का करीब 40 फीसदी हिस्सा खराब रखरखाव और लीकेज के कारण अनायास ही बह जाते हैं.

साथ ही एक बार प्रयोग में लाए पानी को भी किसी अन्य काम में इस्तेमाल किए बगैर ही फेंक दिया जाता है. इस संबंध में इजराइल एक बड़ा उदाहरण पेश करता है जहां 100 फीसदी पानी के इस्तेमाल के बाद 94 फीसदी रिसाइकिल कर इस्तेमाल में लाया जाता है जिसमें सबसे ज्यादा सिंचाई के कामों में लगाया जाता है.

80 फीसदी जलाशयों में पानी कम

हमारा देश मॉनसून और बारिश के पानी पर ज्यादा निर्भर रहता है, लेकिन इस कृषि प्रधान देश में जल संरक्षण को लेकर किसी तरह की कोई जागरूकता नहीं है. डाउनटूअर्थ डॉट ओआरजी डॉट इन के मुताबिक वर्तमान में भारत में वार्षिक स्तर पर महज 8 फीसदी ही जल संरक्षण किया जाता है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे कम है. इसके अलावा देश में करीब 80 फीसदी पानी को रिसाइकिल किए बगैर ही बर्बाद कर दिया जाता है.

water-crisis-bundel2_062519095414.jpgबुंदेलखंड में भी दिख रहा जल संकट (फोटो-शेखर घोष)

केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि देश के 91 बड़े जलाशयों में से 80 फीसदी में पानी सामान्य से भी कम हो गया है. यहां तक कि 11 जलाशयों में पानी का भंडारण नहीं के बराबर है और इस कारण देश में पानी की जबर्दस्त किल्लत है. देश में बारिश का सीजन अमूमन एक जून से 30 सितंबर तक रहता है, लेकिन इस बार अब तक मॉनसून में औसतन 40 फीसदी कमी दर्ज की गई है.

चेन्नई में जल संकट से परेशान लोग

केंद्रीय जल आयोग के अनुसार चेन्नई देश का पहला ऐसा शहर बन गया है जहां इस साल सूखा पड़ा है. आयोग की रिपोर्ट कहती है कि तमिलनाडु में इस बार बारिश में 41 फीसदी की कमी आई है. पिछले कई दिनों से पानी की कमी का सामना कर रहे चेन्नई की आबादी इस समय पानी के टैंक और पीने के पानी के लिए नगर निगम की ओर से मुहैया कराए जा रहे पानी पर निर्भर है. वहां पर पानी के लिए औरतों को लंबी-लंबी कतारों में घंटों खड़ा होते देखा जा सकता है. कई न्यूज चैनल लगातार इस भयावह तस्वीर को दिखा रहे हैं.

पानी बर्बाद नहीं करने का संदेश

शहर में शौच के लिए भी पानी की कमी पड़ गई हैं. शहर में पानी की किल्लत दूर करने के लिए विशेष ट्रेन से पानी चेन्नई भेजा जा रहा है. शहर में लोगों का नहाना और कपड़े धोना आसान नहीं रहा. वहां पर पानी भरने के लिए कई जगहों पर हिंसक झड़पें देखी गई हैं. बोतलबंद पानी के दाम 4 गुणा बढ़ गए हैं जबकि कैन वाटर सिर्फ अमीर लोगों के लिए सुलभ है. वहां पर स्थिति इस कदर भयावह है कि लोगों से अपने घर से ही काम करने को कह दिया गया है. कई रेस्तरां कुछ समय के लिए बंद कर दिए गए हैं. पूरे शहर में पानी बर्बाद नहीं करने का संदेश चस्पा कर दिया गया है.

जल आपूर्ति में लगातार गिरावट

सैटेलाइट के जरिए ली गई तस्वीरों से पता चलता है कि चेन्नई के अहम जलाशय (झील आदि) बीते एक साल में पूरी तरह सूख गए हैं. चेन्नई में 20 लाख से ज्यादा की आबादी दो या तीन साल की अवधि में कम से कम दो महीने तक ताजा पानी के संकट से जूझती है. 50 लाख आबादी वाला चेन्नई देश का छठा सबसे बड़ा शहर है और इसे हर दिन 80 करोड़ लीटर पानी की जरूरत है, लेकिन उनके लिए अभी सिर्फ 52.5 करोड़ लीटर ही उपलब्ध हो पा रहा है और इस आपूर्ति में भी तेजी से गिरावट आती जा रही है.

भारत में 4,000 ट्रिलियन लीटर ताजा पानी

केपीएमजी डॉट कॉम ने 2010 की रिपोर्ट (वाटर सेक्टर इन इंडिया) का हवाला देते हुए बताया कि बारिश और बर्फबारी के कारण भारत को 4,000 ट्रिलियन लीटर पानी मिलता है. इनमें से ज्यादातर ताजा पानी नदियों के जरिए समुद्र और महासागर में जाकर मिल जाता है. साथ ही पानी का एक बड़ा हिस्सा मिट्टी और जमीन के नीचे चला जाता है. इस तरह से कुल ताजे पानी का एक छोटा सा हिस्सा ही झील और तालाबों में पहुंचता है.

पिछले कुछ दशकों में देश में पानी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. 2010 में देश में 581 ट्रिलियन लीटर पानी इस्तेमाल में लाया गया, जिसमें 89 फीसदी सिंचाई में खर्च हो गया, जबकि 7 फीसदी पानी घरेलू इस्तेमाल और 4 फीसदी औद्योगिक जरूरत को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया गया. जल मंत्रालय के अनुसार, देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में काफी कमी आने वाली है. 20 जून तक देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 27.265 बिलियन क्यूबिक मीटर जल संग्रह हो सका जो कुल संग्रहण क्षमता का महज 17 फीसदी ही है.

10 साल में आपूर्ति से ज्यादा मांग

केपीएमजी डॉट कॉम की रिपोर्ट कहती है कि 2025 में प्रति व्यक्ति के आधार पर पानी की उपलब्धता में 2050 में 36 फीसदी की कमी आ जाएगी. जबकि 2001 में यह उपलब्धता 60 फीसदी थी. दूसरी ओर, देखा जाए तो 1988-92 के बीच जहां भारत में 500 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की मांग थी तो वहीं करीब 1,300 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी लोगों के लिए उपलब्ध था. लेकिन यह असमानता अगले 10 साल में खत्म होते हुए बराबर हो जाएगी. 2050 में पानी की मांग 1,500 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की होगी जबकि आपूर्ति महज 1,200 बिलियन क्यूबिक मीटर से थोड़ा ज्यादा ही होगी.

पानी के बेहद खराब प्रबंधन ने आज चेन्नई को ऐसे जल संकट में डाल दिया है जिसने उसे पानी को लेकर सबसे ज्यादा दबाव वाले न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के शहरों में शामिल करा दिया. सिर्फ चेन्नई ही नहीं बेंगलुरू और दिल्ली में जलस्तर तेजी से गिरता जा रहा है. महाराष्ट्र 47 साल के सबसे बड़े सूखे का सामना कर रहा है. नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि अगले एक साल में जलसंकट के कारण 10 करोड़ प्रभावित होंगे.

चेन्नई अभी देश के सामने एक ऐसे उदाहरण के रूप में है कि अगर अब भी जल संरक्षण को लेकर नहीं चेते तो स्थिति हर ओर भयावह हो जाएगी और हर शहर में पानी को लेकर लोगों में संघर्ष की खबरें हर किसी का दिल दुखाती रहेगी. इसलिए इन संकटों से बचने के लिए देश के बड़े शहर जहां एक बड़ी आबादी भी रहती है, साथ ही अन्य जगहों पर भी, पानी के सीमित उपयोग के चलन तथा उनके रिसाइकिल इस्तेमाल के साथ-साथ पानी संचयन के प्राचीन विकल्पों को पुर्नजीवित नहीं किया गया तो अगले कुछ सालों में पानी की कमी से निजात मिलने की जगह और तबाही आ जाएगी तथा प्यास-सूखे से होने वाली मौतों की संख्या में इजाफा होता चला जाएगा.

 

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