ईरान ने अमेरिका को हमले का मुंहतोड़ जवाब देने की धमकी दी है. लिहाजा, अमेरिका ने ईरान के सैन्य ठिकानों पर साइबर अटैक किया है. बताया जा रहा है कि इस हमले में रॉकेट-मिसाइल को संचालित करने वाले कंप्यूटरों को भारी नुकसान पहुंचा है.

अपने हवाई क्षेत्र में घुसकर जासूसी करने वाले अमेरिकी ड्रोन को ईरान ने मार गिराया था

सिर्फ दस मिनट की वजह से ईरान पर अमेरिका का हमला टल गया. वर्ना अमेरिका ने ईरान के तीन ठिकानों पर बमबारी करने की पूरी तैयारी कर ली थी. मगर ईरान पर अमेरिकी हमले को लेकर खतरा अब भी पूरी तरह से टला नहीं है. ख़बरों के मुताबिक दुनिया के बाकी ताकतवर देशों का साथ ना मिलने की वजह से अमेरिका ने भले ही ईरान पर बमबारी नहीं की. मगर ईरानी सैन्य ठिकाने अब भी उसके निशाने पर हैं. ख़बरों के मुताबिक अमेरिका ईरान पर साइबर हमले कर उसके मिलिट्री सिस्टम को जाम करने की कोशिश कर रहा है.

अमेरिका-ईरान के बीच तनाव जारी है. ईरान ने हमले का मुंहतोड़ जवाब देने की धमकी दी है. लिहाजा, अमेरिका ने ईरान के सैन्य ठिकानों पर साइबर अटैक किया है. बताया जा रहा है कि रॉकेट-मिसाइल को संचालित करने वाले कंप्यूटरों को भारी नुकसान पहुंचा है. कहा जाए तो अब ईरान को झुकाने के लिए अमेरिका ने कम्प्यूटर से चाल चलनी शुरू कर दी है. जी, नए आर्थिक और सामरिक प्रतिबंधों की धमकी देने के अलावा अमेरिका ने ईरान के सैन्य ठिकानों पर साइबर हमले भी शुरू कर दिए हैं.

इन हमलों के बाद जिसके बाद अमेरिकी सूत्रों से ख़बर आई कि इस साइबर हमले से ईरान के सैन्य ठिकानों में रॉकेट और मिसाइल प्रक्षेपण में इस्तेमाल होने वाले कंप्यूटरों को नुकसान पहुंचा है. हालांकि अमेरिका के रक्षा अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि नहीं की है. इतना ही नहीं दावा ये भी किया गया कि अमेरिका ने ईरान के एक इंटेलीजेंस ग्रुप पर भी साइबर हमले किए. माना गया कि जिस ग्रुप पर हमले किए गए. उसने तेल के टैंकरों पर हमला करने की योजना में मदद की थी. आपको बता दें कि ईरान पर साइबर हमले की इजाज़त खुद डोनल्ड ट्रंप के दफ्तर की तरफ से मिली है.

जानकार इस साइबर हमले को ईरान से निपटने के लिए अमेरिका के उस प्लान बी की तरह मान रहे हैं, जिसकी तैयारी पिछले कई हफ्तों से की जा रही थी. माना जा रहा है कि ये पहले से तय था कि अगर अमेरिका ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई नहीं कर पाया तो वो उसके सैन्य ठिकानों पर मिसाइल को ऑपरेट करने वाले कम्प्यूटरों पर साइबर अटैक कर देगा. जिसके तहत ना सिर्फ उन कम्प्यूटर सिस्टम्स को निशाना बनाया गया जिनसे ईरान की मिसाइल्स नियंत्रित की जाती हैं. बल्कि ईरान के इंटेलीजेंस ग्रुप को भी इसका शिकार बनाया जाएगा. ये हमला रूस की इंटरनेट रिसर्च एजेंसी पर नवंबर में किए गए हमले जैसा ही था, जिससे उसके कई सिस्टम अस्थायी रूप से ऑफलाइन हो गए थे.

वहीं, इन ख़बरों के आने के बाद इस बात की तस्दीक खुद ईरान की तरफ से भी की गई है. ईरान ने कहा कि अमेरिका ने साइबर अटैक की कोशिश तो खूब की. मगर उससे हो नहीं पाया. देश के संस्थान किसी भी तरह के साइबर हमले से पूरी तरह महफूज़ हैं. ईरान के टेलिकॉम मिनिस्टर मोहम्मद जवाद अजरारी जहरोमी ने कहा कि ‘मीडिया ईरान के खिलाफ कथित साइबर हमले की सच्चाई के बारे में पूछ रहा है. उनकी ओर से कोई हमला सफल नहीं हुआ है. हालांकि वह काफी प्रयास कर रहे हैं.’

अमेरिकी सूत्रों के ज़रिए कहा जा रहा है कि ईरान पर ये साइबर हमले कई हफ्तों तक जारी रहेंगे. इसका मक़सद ईरान की उस हथियार प्रणाली को निशाना बनाना है, जिसका इस्तेमाल इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प करता है. इन हमलों के बाद इस प्रणाली पर ऑनलाइन काम करना बंद हो जाएगा और इसका संचालन ऑफलाइन ही किया जा सकेगा. इतना ही नहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि हम ईरान के ऊपर नये और बड़े प्रतिबंध लगाने जा रहे हैं. इससे पहले ट्रंप ने साफ किया था कि वो किसी भी हालत में ईरान को एक परमाणु संपन्न राष्ट्र बनते हुए नहीं देखना चाहते हैं.

अमेरिकी के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा कि इस्लामिक गणराज्य एक अमीर देश बन सकता है. हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं. ईरान एक खुशहाल देश बन सकता है, अगर वो परमाणु हथियार हासिल करने की अपनी मंशा छोड़ दे. हम नहीं चाहते हैं कि ईरान एक परमाणु संपन्न राष्ट्र बने.

अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम है. वो इसे हर हालत में रोकने की कोशिश कर रहा है. इसके लिए अमेरिका उन तमाम देशों पर दबाव बना रहा है, जिन्हें ईरान अपना तेल बेचता है. ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर किया जा सके. इसके लिए ट्रम्प ने ईरान पर पहले से लगी कई आर्थिक पाबंदियों के अलावा कुछ नईं पाबंदियां भी लगा दी है. जानकार मान रहे हैं कि अमेरिका इज़राइल के दबाव में ईरान को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है. जिसके चक्कर में पूरी दुनिया में उसकी भद्द पिट रही है.

दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप चाहते हैं कि परमाणु संधि का पुनर्गठन हो ताकि ईरान के मिसाइल प्रोग्राम पर कंट्रोल हो सके. सऊदी और यूएई के तेल का व्यापार बढ़े. माना जा रहा है कि ये ट्रंप की इस्राइल को खुश करने की चाल है. ईरान के जिस न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर हाय-तौबा मची है. उसे 2015 में ईरान ने अमेरिका, चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के साथ साइन किया था.

उस समझौते के तहत ईरान ने उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने के बदले अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर सहमति जतायी थी. लेकिन ट्रंप ने मई 2018 में इस समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया था. तभी से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा हुआ है. अब इस मसले पर समझौते में शामिल देशों के अलावा बाकी दुनिया दो गुटों में बंट गई है.

कौन किसके साथ?

एक तरफ अमेरिका के साथ इज़राइल, कतर, सऊदी अरब और यूएई नजर आ रहे हैं तो दूसरी तरफ ईरान के साथरूस, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन और यूरोपियन यूनियन हैं. बावजूद इसके अमेरिका लगातार ईरान पर दबाव की राजनीति करता जा रहा है. जिससे लगातार युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं.

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