हकीम बक़ा उल्लाह साहब (मरहूम) की गिनती ईरान के प्रसिद्ध व्यक्तित्व में होती है। खुद तब यूनानी के माहिर और हिकमत में आला मुक़ाम रखते थे। जनाब हकीम बक़ा उल्लाह साहब (मरहूम) मुगलिया दौर में हिंदुस्तान आये और यही सकुतियत अपना ली। आपकी औलाद को “खानदान बक़ाई ” से मौसूम किया जाता है। हकीम बक़ा उल्लाह साहब बहुत खूबियों के मालिक थे। आला ज़रफ , ज़ब्त नफ़स, मितानत , गैरतमंदी और फिरासत आपकी शख्सियत का हिस्सा था।
हकीम बक़ा उल्लाह साहब तब यूनानी के माहिर और बा रॉब शख्सियत के मालिक थे। आप सादगी पसंद सगुफ्ता मिजाज़ , हमदर्द और खुश अख़लाक़ थे। जो भी आपसे मिलता था आपका मुरीद हो जाता था। आपने तस्नीफ़ व तालीम का भी काम किया था जिसमे मजमुआ बक़ाई आपकी मशहूर तस्नीफ़ है जो कि यूनानी की मशहूर किताबों में शामिल की जाती है।
बदलते ज़माने के साथ साथ हिंदुस्तान में एक नयी हुकूमत का ग़लबा हुआ जिसने एक तरफ मुल्क में अंग्रेजी तिब्ब (एलोपैथिक सिस्टम) को मुतारीफ कराया और दूसरी तरफ तिब्ब यूनानी के खिलाफ साजिशे रचीं और इसे मिटने की भी भरपूर कोशिशें की. उस वक़्त हकीम अजमल खान साहब , हकीम अब्दुल हमीद साहब और दूसरे हुक्मा ने ना सिर्फ अपनी इल्मी, अमली, व फन्नी सलाहियतों से तब यूनानी के ज़रिये लोगों को फैज़ पहुँचाया बल्कि यूनानी के खिलाफ होने वाली साजिशों को काफी हद तक नाकाम किया।
हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद एक बार फिर अंग्रेजी हुकूमत की तर्ज़ पर फीता शाही (Beurocracy) का ग़लबा हुआ जिसने नए तरीका इलाज को रिवाज़ देने में एहम रोल अदा किया मगर वक़्त के साथ साथ इस इलाज और उसकी दवाओं के असरात और मजर उभर कर सामने आने लगे तो आज अवाम का हसास तब्क़ा एक बार फिर तिब्ब यूनानी दूसरे इलाजो पर राग़िब आने लगा है।
आज़ादी के क़ब्ल खानदान बक़ाई के चश्म व चिराग हकीम मुनीरुद्दीन साहब मतब किया करते थे जिनकी रिहाइश दिल्ली के मोहल्ला हौज़ क़ाज़ी में थी। आपके बाद आपके फ़रज़न्द हकीम शरफुद्दीन बक़ाई साहब ने इस खिदमत को अंजाम दिया और 1930 में आपने यूनानी तिब्ब मरकज़ दवाखाना बक़ाई की बुनियाद डाली। जहाँ से हकीम शरफुद्दीन बक़ाई साहब ने अपनी इल्मी , अमली दवासाज़ी , नुस्खा साज़ी व दूसरी सलाहियतों से लोगो को फैज़ पहुँचाया। आपको नब्बाज़ी पर मुकम्मल आबूर हासिल था। आपकी तसख़ीश व तजवीज करदा दवाओं के लोग कायल हो जाते थे। हकीम शरफुद्दीन साहब ने अपनी ज़िन्दगी के आखरी अय्याम में अलालत के बायस अपने फ़रज़न्द हकीम जमीलउद्दीन बक़ाई साहब को अपना जानशीन बनाया और अपनी तमाम सलाहियतों से रोशनाश कराया। उसके अलावा आपने ऐसे बेशुमार मुफरद व मुरक़्क़ाम दवाओं के नुस्खे जात (Herbal Formulations) भी दिए जो कि कई सैलून के इल्मी व अमली तजुर्बात व मुशाहिदात के बाद मर्तब किये गए थे जो कि आज भी हकीम जमील उद्दीन साहब के पास मेहफ़ूज़ हैं. और उन्हें मतब में पिछले कई सालों से दवाओं की मखतलिफ़ शक्लों में लोगों तक पहुँचाया जा रहा हैं।
हकीम जमीलउद्दीन साहब ने अपने वालिद मोहतरम की दी हुई ज़िम्मेदारी व बेशक़ीमती ख़ज़ाने को अपनी ज़िन्दगी की एहम ज़िम्मेदारी समझते हुए लोगों को मुख्तलिफ दवाओं की शक्ल में बतौर तबीब फ़ैज़याब किया। एक मुकम्मल तबीब बनने के लिए हकीम जमीलउद्दीन बक़ाई साहब ने हुकूमत हिन्द की तरफ से तजवीज़ की गयी हिदायतों पर अमल करते हुए 1947 में जामिया हमदर्द से (BIMS) की तालीम प्राप्त की और फिर MD की तालीम मुक़म्मल की और अब अपने वलीद मोहतरम हकीम जमीलउद्दीन बक़ाई साहब की सरपरस्ती में बतौर तबीब और दवासाज़ का काम अंजाम दे रहे हैं।
आप दोनों हकीम साहिबाब ने अपने अबाऔ अजदाद से हासिल बेश क़ीमती नुस्खा जात , जाती तजुर्बात, मॉडर्न रिसर्च और अपनी इल्मी व अमली मेहनत से दूर हाज़िर की मख़सूस बिमारियों जैसे डायबिटीज मिलीतुस , High Blood Pressure, skin disease , दिल का मर्ज़ , मर्दो व औरतों के जिन्सी मर्ज़ के लिए कामयाब व जोड़ असर दवाइयां तैयार की हैं। इस बेश क़ीमती ख़ज़ाने और लोगो को खालिस व मियारी यूनानी दवाएं फ़राहम कराने के लिए हकीम मुहम्मद खुबैब बक़ाई और मुहम्मद जुनैद हसन की मुश्तर्का कोशिशों में देहली में हकीम बक़ाई मेडिकेयर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का क़ायम किया गया। जनाब मुहम्मद जुनैद हसन ने MBA और फिर PGDOM की तालीम मुकम्मल की और अब अपनी तालीमी व तजुर्बाती नज़रयात से अपनी कंपनी में बतौर मार्केटिंग सरपरस्त का काम अंजाम दे रहे हैं। इस कंपनी का नस्बुल ऐन यूनानी तरीका इलाज के ज़रिये लोगो को बिमारियों से छुटकारा दिलाना ही नहीं बल्कि ज़ेहनी और क़ल्बी सुकून भी फ़राहम करना है। इस कंपनी की तमाम दवाइयां हुकूमत हिन्द से GMP Certified हैं और जदीद मशीनों के ज़रिये हकीम साहिबान के ज़ेरे निगरानी तैयार की जा रही है।